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________________ द्रव्यानुयोगतर्कणा [३ तात्पर्य यह है कि द्रव्यादि पदार्थोके ज्ञानसे आत्मज्ञानपूर्वक श्रीजिन भगवानका ज्ञान तथा उनकी नमस्कार आदिरूप भक्ति ही इस ग्रन्थका अभिधेय और प्रयोजन है। सूत्रके प्रथम दो पादोंसे श्रीजिन देवको तथा श्रीगुरु देवको नमस्कार करके आस्तिक मतके अनुसार मङ्गलाचरण तथा नमस्कार प्रदर्शित किया गया है ॥ १॥ और "आत्मोपकृतये कुर्वे" इस तृतीय पादसे यह अभिप्राय दर्शाया है कि आत्माके अभिलाषी जन इस ग्रन्थके अधिकारी हैं ॥ २ ॥ उन अधिकारी जीवोंको पदार्थोंका ज्ञान होगा, इस उपकाररूप ग्रन्थका प्रयोजन है ।। ३॥ और द्रव्यानुयोग इस ग्रन्थका अधिकृत विषय है ॥ ४ ॥ ये ही चार अभिधेय, प्रयोजन, संबन्ध तथा अधिकारी ग्रन्थकी आदिमें अनुबन्धचतुष्टय कहे जाते हैं । अब "द्रव्यानुयोग" इस शब्दका क्या अर्थ है ? इस विषयमें विचार करते हैं । सूत्र और अर्थके व्याख्यानको अनुयोग कहते हैं। उस अनुयोगके चार भेद हैं । उनमें प्रथम चरणानुयोग है, जिसमें आचारके वचन हैं, जैसे आचारांगादि सूत्र ॥ १॥ द्वितीय गणितानुयोग अर्थात् संख्याशास्त्र है, जैसे चन्द्रप्रज्ञप्ति आदिके सूत्र ॥ २ ॥ तृतीय धर्मकथानुयोग अर्थात् कथाशास्त्र है, इसमें ज्ञाताधर्मकथा आदि सूत्र हैं ॥ ३ ॥ और चतुर्थ द्रव्यानुयोग अर्थात् जीव आदि षट् द्रव्योंका विचार है। इसमें सूत्रकृतांगादि सूत्र, संमतिप्रकरण, तत्त्वार्थप्रकरण आदि अनेक महाशास्त्र हैं ॥४॥ अत एव अति उपयोगी होनेसे अन्तिम भेद जो द्रव्यानुयोग है उसीका विचार मैं करता हूँ ॥ १ ॥ विना द्रव्यानुयोगोहं चरणकरणाख्ययोः । सार नेति कृतिप्रेष्ठं निर्दिष्टं सम्मतौ स्फुटम् ॥२॥ भावार्थः-द्रव्यानुयोगके विचारके बिना द्रव्य तथा गुण-पर्यायोंका ज्ञान नहीं होता अत एव चरणानुयोग तथा करणानुयोगमें द्रव्यानुयोगके ज्ञानके विना कुछ तत्त्व नहीं है, और द्रव्यानुयोगके ज्ञानको ही चरणानुयोग तथा करणानुयोगका सार और पण्डित जनोंको अतिप्रिय संमति ग्रन्थमें स्पष्ट रीतिसे दर्शाया है ॥२॥ व्याख्या । द्रव्यानुयोगोहं द्रव्यगुणपर्यायविचारं विना चरणकरणयोः सारं न । चरणसप्तत्याः करणसप्तत्याश्च सारं केवलं द्रव्यानुयोग एव । इत्ययं निष्कर्षः । सम्मतिग्रन्थे स्फुटं प्रकटं कृतिप्रेष्ठ बुधजनवल्लभं निर्दिष्टं कथितं बुधा एव जानते न तु बाह्यदृष्टयः । यत: "चरणकरणप्पहाणा ससमयपरसमयमुक्कवावारा । चरणकरणस्स सारं णिच्चयसुद्ध न जाणंति ॥१॥” इतीयं गाथा सम्मजी कथिता । अतश्चरणकरणानुयोगमूल इहोपायो द्रव्यानुयोग एव उक्तः ॥ २ ॥ ___व्याख्यार्थः-द्रव्यानुयोग जिसमें जीव आदि संपूर्ण द्रव्य, गुण तथा संपूर्ण पर्यायोंका पूर्णरूपसे वर्णन है उसके ( द्रव्यानुयोगके ) ज्ञानके विना चरण तथा करणानुयोगमें Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001655
Book TitleDravyanuyogatarkana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhojkavi
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1977
Total Pages226
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Religion, H000, & H020
File Size19 MB
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