________________ 208 ] श्रीमद्राजचन्द्रजैनशास्त्रमालायाम् कंपनका तुम परम्परासंबन्ध मानकर, उससे अवयवीको सकंप कहते हो उसी प्रकार एकदेशवृत्ति जो निष्कंप है उसके परंपरासंबंधसे अवयवीमें निष्कंप भी कहोगे / इसलिये एकदेशसे अवयवी चलता है और एक प्रदेशसे अवयवी नहीं चलता यह जो अखंडित व्यवहार है इससे द्रव्यका अनेक प्रदेश स्वभाव है ऐसा मानना योग्य है / और यदि द्रव्यका इसी प्रकार अनेक प्रदेश स्वभाव अंगीकार नहीं करते हो तो आकाश आदि द्रव्यका सर्वज तथा देशज परमाणु संयोग कैसे बन सकता है ? / अब देशज तथा सर्वज संयोग क्या है ? इसको अग्रिम इलोकसे स्पष्ट करते हैं // 6 // देशसकलभेदाभ्यां द्विधा दृष्टा जगत्स्थितिः / प्रत्येकं दूषणं तत्र ब्रूते वृत्तिश्च संमतेः // 7 // भावार्थः- देश तथा सर्वके भेदसे जगतकी स्थिति दो प्रकारकी देखी गई है / इनमेंसे एक किसी पक्षके माननेसे संमति ग्रंथकी वृत्ति दृषण देती है / / 7 / / व्याख्या। एका वृत्तिर्देशतोऽस्ति यथा कुण्डलेनेन्द्रस्य, द्वितीया सर्वतोऽस्ति यथा समानवस्त्रद्वयस्य, तत्र प्रत्येकं दूषणं संमतिवृत्तो कथितम् / यतः परमाणोराकाशादेश्च देशवृत्तिमङ्गीकुर्वतामाकाशादिकाना प्रदेशानङ्गीकारेऽप्यागच्छति / अथ च सर्वतोवृत्तिमङ्गीकुर्वतां परमाणुराकाशादिप्रमाणत्वं लभते / उभयाभावे तु परमाणोरवृत्तित्वं भवेत् / यावद्विशेषाभावस्य सामान्याभावनियतत्वादित्यादि / / 7 / / व्याख्यार्थः--एक वृत्ति तो देशसे ( एक देशसे संबंध रखनेवाली ) है जैसे कुण्डलके साथ इन्द्रकी और दूसरी सर्व देशसे है जैसे समान आकारवाले दो वस्त्रोंके। उनमें प्रत्येक पक्षमें संमति ग्रंथकी वृत्तिमें दूषण कहा गया है ! क्योंकि परमाणु और आकाश आदिके एकदेशवृत्ति स्वीकार करनेवालोंके जो संयोग है वह यदि आकाश आदिके प्रदेश न माने जावे तो भी हो सकता है / और सर्व देशसे वृत्ति स्वीकार करनेवालोंके मतसे परमाणु आकाश आदिकी प्रमाणताको प्राप्त होता है अर्थात् जितना बड़ा आकाश है उतनाही बड़ा परमाणु भी होगा / और एकदेश तथा सर्वदेश दोनों ही वृत्तियोंको न मानें तो परमाणुकी अवृत्ति ही होगी / एकदेश व सर्वदेश कोई वृत्ति न रहनेसे सामान्यसे वृत्तिका अभाव हो जायगा / क्योंकि समस्त विशेषभाव सामान्यके अभावके समनियत है इत्यादि // 7 // स्वभावादन्यथाभावो विभावोऽपि महद्वयथा / नानादेशादिकर्मोपाधिर्यतो घटते कथम् // 8 // भावार्थ:-स्वभावसे अन्यथा भावरूप विभाव भी महाव्यथारूप है / क्योंकि इस विभाव स्वभावके विना जीवके नाना देशकाल आदिसे उत्पन्न कर्मोपाधि कैसे घटित हो सकती है ? अर्थात् नहीं घटित हो सकती // 8 // Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org