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द्रव्यानुयोगतर्फणा इत्यादि संबन्धोंके खोज करनेसे अनवस्था दोष हो जायगा । इसलिये कथंचित् अनित्य स्वभाव भी अवश्य माननेके योग्य है । इस प्रकार श्लोकका तात्पर्य है ॥१९॥
स्वभावकाश्रयत्वे त्वेकस्वभावविलासता ।
अनेकार्थप्रवाहेणानेकस्वभावसंभवः ॥२०॥ ___ भावार्थः - स्वभावोंका एकाश्रय स्वीकार करनेपर एक स्वभावकी विलासता है तथा अनेक स्वभावयुक्त पदाथके प्रवाहसे अनेक स्वभावका भी संभव है ।। २०॥
व्याख्या । स्वभावकाश्रये स्वभावो हि सहभावी धर्मस्तस्याधारत्वे स्वभावकाश्रयत्वे त्वेकस्वभावो यथा रूपरसगन्धस्पर्शानामाधारो घटादिरेकः कथ्यते । नानाधर्माधारत्व एकस्वभावता नानाक्षणानुगमनत्वे नित्यस्वभावता इत्ययं विशेषो ज्ञेयः । मृदादिद्रव्यस्य स्थासकोशकुसूलादिका अनेके द्रव्यप्रवाहाः सस्ति तेनानेकस्वभावप्रकाशे पर्यायत्वेनादिष्टं द्रव्यं क्रियते, तदा आकाशादिद्रव्येष्वपि घटाकाशादिभेदेनैतत्स्वभावदुलंमता नास्ति । एवमनेकार्थप्रवाहेणानेकस्वमावसंभव इति ॥२०॥
व्याख्यार्थः-स्वभावका अर्थ है द्रव्यके साथ होनेवाला धर्म, उसके आधारको एक माननेसे एक स्वभाव होगा। जैसे-रूप, रस, गंध तथा स्पर्शका आधार (आश्रय) घट आदि पदार्थ एक कहा जाता है । और नानाप्रकारके धर्मोंका आधार होनेपर एकस्वभावता अर्थात् नानाक्षणमें वही मृत्तिकारूप द्रव्यका जो अनुगमन ( अनुवृत्ति ) है वह नित्यस्वभावता है, यह विशेष जानना चाहिये । और मृत्तिका आदि द्रव्यके पिंड, कोश, कुसूल आदि अनेक द्रव्यप्रवाह होते रहते हैं इससे अनेकस्वभावयुक्त भी पर्याय रूपसे द्रव्य होता है । और जब ऐसा हुआ तब आकाश आदि द्रव्योंमें भी घट आकाश, मठ आकाश, आदि भेदोंसे नानारत्रभावता ( अनेक स्वभावपना ) दुर्लभ नहीं है । इस प्रकारसे नानाप्रकारके स्वभावयुक्त द्रव्यका प्रवाह होनेसे द्रव्य नानास्वभावका धारक है, यह भी पक्ष संभव है ।। २० ॥
विनैकत्वं विशेषो न सामान्याभावतो लभेत् ।
अनेकत्वं विना सत्ता विशेषाभावतो नहि ॥२१॥ भावार्थ:--एक स्वभावके अभावमें सामान्यके विना विशेषकी प्राप्ति नहीं होती ओर अनेक स्वभावके विना विशेषका अभाव होने से सत्ता ( सामान्य ) की प्राप्ति नहीं होती है ।। २१ ॥
व्याख्या । एकत्वं विना एकस्वमा विना सामान्यामावेन विशेषो न प्राप्यते । तथा अनेकत्वं विना अनेकस्वभावमन्तरेण सत्ता अपि न घटते । तत एकानेकेति स्वमावद्वयमङ्गीक योग्यम् । तथैव विशेषाभावतो नहीति, विशेषमन्तरा सामान्यं न, सामान्यमन्तरा विशेषो नेति । एक बिना अनेकता न, अनेक विना नैकत्वमिति ॥ २१ ॥
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