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________________ श्रीमद्राजचन्द्रजैनशास्त्रमाला.. श्रीभोजकविविरचिता द्रव्यानुयोगतर्कणा भाषानुवादसहिता च श्रीगुरुभ्यो नमः । श्रीवीतरागाय नमः । मङ्गलाचरणम् श्रियां निवासं निखिलार्थवेदकं सुरेन्द्रसंसेवितमन्तरारिघम् । प्रमाणयुङ्न्यायनयप्रदर्शकं नमामि जैनं जगदीश्वर महः ॥१॥ यदीयगोभि वनोदरस्थितं कुवादभूच्छायभर निवार्यते । द्रव्यादियाथात्म्यमपि प्रकाश्यते जयत्यधीशः स जिनस्त्रयोतनुः ॥२॥ वन्दे वीरपरम्परावियदहथं सनाथं श्रिया, गाम्भीर्यादिगुणावलीप्रविलसद्रत्नौघरत्नाकरम् । विद्यादेवपुरोहितप्रतिनिधि श्रीमत्तपागच्छपं, प्रख्यातं विजयाद्दयागणधर द्रव्यानुयोगेश्वरम् ॥ ३ ॥ श्रीभावसागर नत्वा श्रीविनीतादिसागरम् । प्रबन्धे तत्प्रसादेन किश्चिद्व्याख्या प्रतायते ॥ ४ ॥ तद्भावयुक्तं श्रीमन्तं सुविनीतं गुरु मुदा । प्रणम्य रम्यभावेन सूत्रवृत्तिः प्रतायते ॥५॥ अनेक प्रकारकी लक्ष्मियोंका निवासस्थान, संपूर्ण पदार्थोंका संप्रवर्तक, देवेन्द्रोंसे सेवित, अन्यन्तरके शत्रुओंका नाशक, और प्रमाणसहित न्यायमार्गका प्रदर्शक, ऐसे श्रीजिन भगवानसम्बधी जगदीश्वर-तेजको मैं नमस्कार करता हूँ ॥१॥ जिनकी किरणोंसे संसार www.jainelibrary.org Jain Education International For Private & Personal Use Only
SR No.001655
Book TitleDravyanuyogatarkana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhojkavi
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1977
Total Pages226
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Religion, H000, & H020
File Size19 MB
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