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________________ " 90.2 M .. . ( १८ ) वि०संख्या विषय प्रा०पृष्ठाङ्क प्रा०श्लो० वि०संख्या विषय प्रा० पृष्ठाङ्क प्रा.श्लोक ४४ सद्भूत व्यवहार उपनयका निरूपण ९८ १ ६८ षद्रव्योंके नाम .... ४५ असद्भूत व्यवहार उपनयका कथन १०० ४ ६९ धर्म द्रव्यका वर्णन .... १६६ ४ ४६ उपचरित असद्भुत उपनयका वर्णन १०८ ७० अधर्म द्रव्यका कथन ४७ उपसंहार और सप्तमाध्यायकी ७१ धर्म द्रव्यमें प्रमाण समाप्ति ७२ अधर्म द्रव्य में प्रमाण ... १६९ ४८ दो मूलनयोंमें प्रथम निश्चयनयका ७३ आकाश द्रव्यका निरूपण कथन .... १११ ७४ काल द्रव्यका वर्णन ४९ द्वितीय व्यवहारनयका निरूपण ११२ ७५ पुद्गल और जीव द्रव्यका वर्णन १८२ २० ५० इन नय, उपनय और मूलनयोंका ७६ उपसंहार और दशमाध्यायकी वर्णन दिगम्बरीय नय-चक्रमें देवसेनजी इसीप्रकार किया है। ___समाप्ति ७७ गुणनिरूपणकी प्रतिज्ञा यह कथन .... ७८ दश सामान्य गुणोंका निरूपण १८५ ५१ इस नयविचारमें दिगम्बर और श्वेता ७९ विशेष गुणोंका वर्णन .... १८९ ७ म्बरोंके अर्थभेद नहीं, यह वर्णन ८० एकादश सामान्य स्वभावोंका कथन १९३ १३ ५२ दिगम्बर नव नय मानते हैं, इसका । ८१ उपसंहार और ११ वें अध्यायकी खंडन ५३ द्रव्याथिकके दश भेद उपलक्षण समाप्ति ... .... २०२ मात्र हैं, यह वर्णन .... .... १२७ २० ८२ दश विशेष स्वमावोंका वर्णन ५४ उपनय भी व्यवहारमें ही अन्तर्गत हो । ८३ किस २ द्रव्यमें कितने २ स्वभाव हैं, जाते हैं यह कथन २११ १२ ८४ उपसंहार और १२ वे अध्यायको ५५ निश्चय और व्यवहारमें जब एककी मुख्यता रहती है, तब दूसरेकी समाप्ति .. २१२ १५ गौणता रहती है, यह निरूपण ८५ कौन २ से स्वभाव किस २ नय के , २२ मतसे हैं, यह वर्णन .... २१३ ५६ निश्चय तत्वार्थको और व्यवहार कोको ८६ गुण और पर्यायका लक्षण क्तिको कहता है ... .... १३० २३ | ८७ उपसंहार और १३ वें अध्यायकी ५७ निश्चयका विषय ... ... १३१ २४ समाप्ति ... .... २२२ १८ ५८ व्यवहारका विषय .... १३२ २५ ५९ उक्त कथनका सक्षेप . १३३ २६ ८८ पर्यायका निरूपण .... . २२३ ६० अष्टमाध्यायकी समाप्ति १३४ २७ | ८९ गुणके विकार ही पर्याय हैं, इस मतका ६१ एकही पदार्थ उत्पाद, व्यय और खंडन २३२ १७ ध्रौव्य इन तीन लक्षणों सहित है, ९. उपसंहार और १४ वें अध्यायकी यह निरूपण .... समाप्ति २३३ ६२ उत्पादका वर्णन .... १५४ १९ ६द्रव्यविचार करने का फल २३३ ६३ नाशका वर्णन ९२ द्रव्यानुयोगका प्रकाश मैंने किया ६४ ध्रौव्यका निरूपण ९३ द्रव्यानुयोगके अभ्यासी उत्तम हैं ६५ उपसंहार और नवमाध्यायकी समाप्ति, २६ । ९४ ज्ञानकी प्रशंसा ६६ द्रव्यका निरूपण करनेकी प्रतिज्ञा १६४ १ ९५ प्रशस्ति ... ... ६७ द्रव्यपरिझानसे सम्यक्त्वकी शुद्धि , २ / ९६ ग्रंथ की समाप्ति २४. २३ . ... २२११० 1.00 २३४ २३७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001655
Book TitleDravyanuyogatarkana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhojkavi
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1977
Total Pages226
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Religion, H000, & H020
File Size19 MB
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