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________________ वि०संख्या विषय. १ टीकामङ्गलाचरण. २ सूत्रमङ्गलाचरण. ३ इम्यानुयोगकी प्रशंसा ४ उपसंहार और प्रथमाध्यायकी समाप्ति १० ५ द्रव्यका लक्षण. ११ ६ गुण तथा पर्यायका संक्षिप्त लक्षण. १२ ७ द्रव्यके साथ गुण और पर्यायका भेद. १४ ८ सामान्यका निरूपण ९ शक्तिरूप गुणका निषेध २० २१ १० गुण और पर्यायकी एकता ११ पर्याय मिम्न गुण मानने वालोंके प्रति प्रा० पृष्ठाङ्क प्रा०लो० १ 300 Bw3E ... Jain Education International .... २२ दूषण १२ पर्यायका कारण गुणको माननेवालों के प्रति दूषण १३ एकानेकस्वरूप तथा आधाराधेयभाव से भेद कल्पना श्रीः । अथ विषयसूची । .... १८ नैयायिकका मत और उसका खंडन १६ ज्ञान में सर्वथा अविद्यमान अर्थका मान माननेवालोके पनि दूषण २० उपसंहार और तृतीयाध्याय की समाप्ति १४ आधाराधेयभावका दृष्टान्त १५ उपसंहार और द्वितीयाध्यायकी समाप्ति १६ द्रव्यादिकमें सर्वथा भेद माननेवालोंक प्रति दूषण १७ यदि कार्योत्पत्तिके पहले कारणमें कार्य है तो कार्य क्यों नहीं दीख पड़ता ? इस शंकाका समाधान १ 1007 २ 男 २२ २५ २६ २७ २८ ३५ ३६ ४१ २१ "एक दृश्य में परस्पर विरोधी भेद और अभेद ये दोनों धर्म नहीं रह सकते"? इस शंकाका निराकरण २२ जहां भेद है, वहां अभेद नहीं रहता; इस शंकाका निराकरण ३८ ४३ ४७ २ € २ ३ ४ १० ११ १२ १२ rr १५ १६ १ ८ ६ ११ १५ ६ वि० संख्या विषय २३ जिस द्रव्यके भेद है उसीके रूपान्तरको प्राप्त होनेपर अभेद हो जाता है। और इसरीति से सैकड़ों नयोंका उदय होता है, इस प्रकार निरूपण ४२ २४ क्षेत्र आदिसे सप्तभंगीकी उत्पत्ति और उनका वर्णन २५ उपसंहार और चतुर्थ अध्यायकी समासि .... प्रा०पृष्ठास्क प्रा०श्लो० ૪ २६ प्रमाण और नयके विषयका निरूपण ५७ २७ द्रव्याधिकनके विषयका वर्णन २८ पर्यायार्थिक नयके विषयका निरूपण २१ दोनों नव मुख्यता तथा गौगतासे भेद और अभेदका निरूपण करते हैं, यह वर्णन ६१ ३० एक नय एकही विषयको कहता है, ऐसा माननेवालों के प्रति दूषण ६२ ३१ दिगम्बरमत जाननेके लिये उनके ६४ .... मतके अनुसार नयों और उपनयोंके कथनकी प्रतिज्ञा ३२ नय, उपनय और मूलनयों की संख्या ६५ ३३ द्रव्याविनयके दश १० भेदों का वर्णन ६६ ३४ ज्ञानकी प्रशंसा और पचमाध्यायकी समाप्ति ३५ दिगम्बरमतसे मी सत्यका ग्रहण करना चाहिये, यह वर्णन For Private & Personal Use Only .... ५० ३६ पर्यायार्थिक नय के भेदोंका निरूपण ३७ नैगमनयके ३ भेदों का कथन .... ५९ ६० ७६ ७८ ६३ ३८ संग्रह नयके दो का वर्णन ३६ व्यवहारनयके दो भेदोंका कथन ४० ऋऋजुसूत्रतयके दो भेदका निरूपण ४१ शब्दनय और समभिरूढनयका वर्णन ९४ ४२ एवंभूत नयका वर्णन और नव नयोंके भेदोंकी संख्या ४३ उपसंहार और षष्टाध्यायको समाप्ति ९७ * ૮૪ ८६ < & * १ २ ३ ५४ ८ ९ २० we as me ९ १२ १३ १४ १५ १६ १७ www.jainelibrary.org
SR No.001655
Book TitleDravyanuyogatarkana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhojkavi
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1977
Total Pages226
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Religion, H000, & H020
File Size19 MB
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