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द्रव्यानुयोगतर्कणा
अन्येषाँ चैव द्रव्याणां त्रीणि त्रीणि पृथक् पृथक् ।
स्वजात्या चेतनत्वाद्याश्चत्वारोऽनुगता गुणाः ॥६॥
:- अन्य द्रव्यों के पृथक् पृथकू तीन तीन गुण होते हैं । और निज जातिकी
भावार्थ:अपेक्षासे चेतनत्वआदि चार गुण अनुगत हैं ॥ ९ ॥
व्याख्या । अन्येषां द्रव्याणां पृथक् पृथक् त्रयः २ गुणाः । यथा धर्मास्तिकायस्य गतिहेनुतागुणः, अचेतनत्वगुणः, अमूर्त्तत्वगुणः । एवं श्रयोऽधर्मास्तिकायस्य स्थितिहेतुत्वा चेतनत्वा मूर्त्तत्वादयः । आकाशास्तिकायस्यावगाह हेतुताचेतनत्वा मूर्त्तत्वादयः । कालस्य वर्त्तनाहेतुत्वा चेतनत्वा मूर्त्तत्वादयः । इत्यादि ज्ञेयम् । अथ चेतनाचाश्चात्वारः सामान्यगुणाः । चेतनत्वाचेतनत्वमूर्त्तत्वानि सामान्यगुणेष्वपि सन्ति विशेषगुणेषु च सन्ति । तत्र किं कारणं चेतनत्वाद्याश्चत्वारः सामाभ्यगुणाः स्वजात्यपेक्षया अनुगतव्यवहारकर्त्तारः सन्ति तस्मात्सामान्यगुणाः कथ्यन्ते ॥६॥
व्याख्यार्थःयः - अन्य अर्थात् पुद्गल तथा जीवसे भिन्न द्रव्योंके पृथक् २ तीन २ विशेष गुण हैं । जैसे धर्मास्तिकाय के गतिहेतुता, अचेतनत्व और अमूर्त्तत्व ये तीन विशेषगुण हैं, ऐसे ही अधर्मास्तिकायके स्थितिहेतुता, अचेतनत्व तथा अमूर्तत्व ये तीन विशेषगुण हैं । आकाशास्तिकाय के अवगाहनत्व, अचेतनत्व, और अमूर्त्तत्व ये तीन विशेषगुण हैं । कालके बर्त्तनाहेतुत्व, अचेतनत्व तथा अमूर्त्तत्व ये तीन विशेषगुण हैं । इत्यादि जानना चाहिये । और चेतनत्वआदि अर्थात् चेतनत्व, अचेतनत्व, मूर्त्तत्व, और अमूर्तत्व ये चार सामान्यगुण हैं । चेतनत्व, अचेतनत्व, मूर्तत्व तथा अमूर्त्तत्व ये चार सामान्यगुणों में भी हैं; और विशेषगुणोंमें भी हैं; इसमें क्या कारण है ? ऐसा पूछो तो उत्तर यह है; कि चेतनत्वआदि चार सामान्यगुण निज आश्रयीभूत जातिकी अपेक्षा से अनुगत व्यवहारके करनेवाले हैं, इसलिये ये सामान्यगुण कहे जाते है ||९||
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एत एव विशेषेण गुणा अपि जिनेश्वरः । परजातेरपेक्षया ग्रहणेन परस्परम् ॥१०॥
भावार्थ:- और परजातिकी अपेक्षासे परस्पर ग्रहण करनेसे इन्हीं चारों गुणोंको श्री जिनेश्वरोंने विशेषगुण भी कहा है ।। १० ।।
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व्याख्या । परजात्यपेक्षया चेतनत्वादयोऽचेतनत्वादिकेभ्यः स्वाश्रयव्यावृत्तिकराः सन्ति ततो विशेषगुणाः परापरसामान्यवत्सामान्यविशेषगुणत्वमेषामिति भावः । एत एव विशेषेणेति स्पष्टम् ॥१०॥
व्याख्यार्थः - चेतनकी अपेक्षा अचेतन पर है; इस परजातिकी अपेक्षा से चेतनत्व आदि अचेतनत्व आदिकसे निज आश्रय में व्यावृत्तिकर हैं;
इस लिये
विशेषगुण हैं ।
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