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श्रीमद्रराजचन्द्र जैनशास्त्रमालायाम्
ईक्षणं वर्णगुणः, एते चत्वार: पुद्गलस्य विशेषगुणाः शुद्धद्रव्ये अविकृतरूपा एतेऽविशिष्टास्तिष्ठन्ति तत एते गुणाः कथिताः, विकृतस्वरूपास्ते पर्यायेषु मिलन्ति इत्येवं विशेषोऽत्र ज्ञेयः । तथा पुनः गत्यादयो गुणा हेतुतारा एतावता गतिहेतुता, स्थितिहेतुता, अवगाहहेतुता वर्त्तनाहेतुता, एते चत्वारो गुणाः प्रत्येकं धर्मास्तिकायार्मास्तिकाया काश। स्तिकायकालद्रव्याणां क्रमेण सन्ति विशेषगुणाश्चत्वारः ||७||
व्याख्यार्थः – ज्ञानगुण १ दर्शनगुण २ सुखगुण ३ तथा वीर्यगुण ४ ये चारों आत्मा विशेष गुण हैं । और स्पर्शगुण १ गन्धगुण २ रसगुण ३ तथा वर्णगुण ४ ये चारों पुद्गल के विशेष गुण हैं । ये गुण शुद्ध द्रव्यमें अविकृतरूपसे रहते हैं । और विकृत (विकारसहित ) होने से वे पर्यायोंमें मिलते हैं; यह विशेषता जाननी चाहिये । और गति आदि गुण हेतुतापरक हैं; इससे यह सिद्ध हुआ कि गतिहेतुता, स्थितिहेतुता, अवगाहहेतुता, तथा वर्त्तनाहेतुना ये चारों गुण एक एक धर्मास्तिकाय आदिके हैं, अर्थात् गतिहेतुता धर्मास्तिकायका स्थितिहेतुता अधर्मास्तिकायका, अवगाहनहेतुता आकाशास्तिकायका, तथा वर्त्तनाहेतुता कालका, विशेषगुण है । इस प्रकार ये गतिहेतुताआदि चारों धर्मास्तिकायआदि चारों द्रव्योंके क्रमसे विशेष गुण हैं ॥ ७ ॥
चैतन्यादिचतुभिस्तु युक्ताः षोडशसंख्यया । विशेषेण गुणास्तत्राप्यात्मनः पुद्गलस्य षट् ॥८॥
भावार्थ:- चैतन्यआदि चारों गुणोंके साथ पूर्वोक्त द्वादश गुण मिलके सोलह गुण होते हैं; उनमेंसे आत्मा तथा पुद्गलके छः छः गुण होते हैं ॥ ८ ॥
व्याख्या । अथैतेषां द्वादशगुणानां चैतन्यादिचतुभियुक्ताश्चेतनत्वा चेतनत्वमूर्त्तत्वादिभिश्चतुभिः सहिताः सन्तः षोडश गुगा भवन्ति । तेषु गुगेषु पुद्गलद्रव्यस्य वर्णगन्धरसस्पर्शमूर्त्तत्वाचे तनत्वानि षट् सन्ति । आत्मद्रव्यस्य ज्ञानदर्शन सुखवीर्या मूर्त्तत्व चेतनत्वा नीति षट् गुणा भवन्ति । अथान्येषां द्रयाणां समुदायेन त्रय एव गुणा भवन्ति, एको निजगुणः, अचेतनत्वम् अमूर्त्तत्वम् इति विमृश्य धार्यम् ॥८॥
व्याख्याथैः– अब इन द्वादश गुणों के जत्र चेतनत्व आदि चारों गुणोंका योग होता है; अर्थात ये पूर्वा द्वादश गुण जब चेतनत्व, अचेनतत्व, मूर्त्तत्व, और अमूर्तत्व इन चारों गुणोंसहित होजाते हैं; तब सोलह विशेष गुण हो जाते हैं । उन सोलह गुणोंमेंसे पुद्गलद्रव्य के वर्ण, गन्ध, रस, स्पो, मुर्तत्व और अचेतनत्व ये छह विशेषगुण होते हैं । और आत्म (जीव) द्रव्यके ज्ञान दर्शन, सुख, वीय, अमूर्तत्व तथा चेतनत्व ये षट् विशेष गुण है | और अन्य द्रव्यके समुदायसे तोन ही गुण होते हैं । उनमें से एक निजगुण तथा
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अचेतनत्व और अमृतत्व ऐसे दो ये, इस प्रकार विचारके निश्चय करना चाहिये ||८||
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