________________
द्रव्यानुयोगतर्कणा
[ १८५ प्रस्तुतान् यथामति यथा स्यात्तथा पूर्वप्रणेतृणां विस्तारदुर्बोधत्वेन स्वमतिविषयी यथा स्यात्तथा वक्ष्ये कीर्तयिष्यामीति ॥१॥
व्याख्यार्थः-नाभिराजाके जो पुत्र हैं उनको नाभेय कहते हैं; अनेक प्रकारकी लक्ष्मीसे जो युक्त हों उनको श्रीनाभेय कहते हैं; श्रीनाभेय ऐसे जो जिन, सो श्रीनाभेय जिन हैं; उनको अर्थात् श्रीऋषभनाथ तीर्थंकरजीको नमस्कार करके तथा गुण जो वाणोके गुण उनका उपदेश करनेवाले जो श्रीगुरु हैं; उनको नमस्कार करके अर्थात् निर्विघ्न समाप्तिको इच्छासे इष्ट देव तथा गुरुको प्रणामरूप मंगलाचरण करके मैं द्रव्योंके विवरणके पश्चात् प्रस्तुत ऐसे गुणोंके भेदोंको निजबुद्धिके अनुसार अर्थात् पूर्वाचार्यप्रणीत ग्रन्थों में विस्तारसे वर्णन है; तथा कष्टसे उनका ज्ञान होता है; इस कारण अपनी बुद्धि के गोचर जैसे हो तैसे कहूँगा ।। १ ॥
अथात्र गुणभेदान्समानतंत्रप्रक्रियया प्रतिपादयन्नाह । अब यहां समानतंत्रप्रक्रियासे गुणके भेदोंका प्रतिपादन करते हुए कहते हैं ।
तत्रास्तित्वं परिज्ञेयं सद्भूतत्वगुणं पुनः ।
वस्तुत्वं च तथा जातिव्यक्तिरूपत्वमुच्यते ॥२॥ भावार्थः-उनमें सद्भूतत्व जो गुण है; उसको अस्तित्व जानना चाहिये और जाति (सामान्य) व्यक्ति (विशेष) रूप जो है; उसको दूसरा वस्तुत्व गुण कहते हैं ॥२॥
___व्याख्या । अस्तित्वं । तोदं परिज्ञेयं सत्तातो यो गुणो भवति तस्मात्सद्भूतताया व्यवहारो जायते स चास्तित्वगुणः ।। वस्तुत्वं च जातिव्यक्तिरूपत्वम् । जातिः सामान्यं यथा-घटे घटत्वं । व्यक्तिविशेषो यथा-घट: सौवर्णः, पाटलिपुत्रः, वासन्तिक, कम्बुग्रीव इत्यादि । अत एवावग्रहेण सर्वत्र सामान्यरूपं भासते, अपा (वा) येन विशेषरूपामासो जायते । पूर्णोपयोगेन संपूर्णवस्तुग्रहो जायते, इत्थं वस्तुत्वं द्वितीयो गुणः ।। २ ।।
___ व्याख्यार्थः-उनमें सत्तासे जो गुण होता है; और जिससे लोक में सद्भूतताका व्यवहार होता है; वह अस्तित्व प्रथम गुण है; इसीको अस्तित्व जानना चाहिये । और जातिव्यक्तिरूप जो हो सो वस्तुत्व है। जाति सामान्यको कहते हैं; जैसे घटमें घटत्व, व्यक्ति विशेषका नाम है; जैसे यह घट द्रव्यसे सुवर्णका है, क्षेत्रसे पटना नगरका है, कालसे वसन्त ऋतुमें उत्पन्न हुआ है, और कंबुग्रीवआदि आकारका धारक है; इत्यादि । इसी कारणसे अवग्रहनामक मतिज्ञानके प्रथम भेदरूप ज्ञानसे सब स्थानों में सामान्यरूपका ही भान होता है; और मतिज्ञानका तृतीय भेद जो अपाय अथवा अवाय है; उसके द्वारा विशेषरूपका ज्ञान होता है। तथा परिपूर्ण ज्ञानसे सामान्य तथा विशेष दोनों रूप वस्तुका ग्रहण होता है । ऐसे वस्तुत्वनामक दूसरा गुण है ॥२॥
द्रव्यत्वं द्रव्यभावत्वं पर्यायाधारतोन्नयः । प्रमाणेन परिच्छेद्य प्रमेयं प्रणिगद्यते ॥३॥
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org.