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___ श्रीमद्राजचन्द्रजैनशास्त्रमालायाम् उत्पत्तेरपि नाशस्यानुगमे पर्ययार्थतः ।
भूतादिप्रत्ययोद्धानं घटते समयप्रमम् ॥ ११॥ भावार्थ-उत्पत्ति तथा नाशकी ऋजुसूत्रादि पर्यायार्थिकनयसे एकता माननेपर भूतआदि प्रत्ययका भान समयप्रमाण निश्चयनयसे घटित होता है ॥ ११ ॥
व्याख्या । उत्पत्तेरपि पुनर्नाशस्य चानुगमे एकतायां पर्ययार्थतः ऋजुसूत्रादेः सकाशाद् भूतादिप्रत्ययोद्भानं समयप्रमं घटत इति यतो निश्चयनयात् “कजमाणे कडे” एतद्वचनमनुसृत्योत्पद्यमान उत्पन्न एवं यदि कथ्यते परन्तु व्यवहारनयादुत्पद्यते, उत्पन्नः, उत्पत्स्यते, नश्यति, नष्टं, नङ्क्षयति । एतद्विभक्त्या कालत्रयप्रयोगोऽस्ति । स प्रतिक्षणपर्यायोत्पत्तिनाशनयवादी ऋजुसूत्रनयस्तेनानुगृहीतो यो व्यवहारनयस्तमनुगृह्य कथ्यते । कथं तहजुसूत्रनयस्तु समयप्रमाणं वस्तु मनुते तत्र यो पर्यायस्य वर्तमानावुत्पत्तिनाशी विवक्षिती तावेव गृहीत्वोत्पद्यते नश्यतीति कथनीयम । वर्तमाने यदतीतत्वं तद्गृहीत्वोत्पन्ननष्ट इति कथ्यते । अत्रैव तदतीतं तदनागतमिव विचिन्त्योत्पत्स्यते नश्यत्येवं कथ्यते । इतीयमनागते व्यवस्था सर्वापि स्याच्छब्दप्रयोगेण संभवेदिति ॥ ११ ॥
व्याख्यार्थः-उत्पत्ति तथा नाश इन दोनोंकी एकतामें पर्यायार्थिक जो ऋजुसूत्र आदि नय हैं; उनसे भूतआदि प्रतीतिका ज्ञान समयप्रमाण घटता है; क्योंकि-निश्चयनयसे "कज्जमाणे कड़े" ( जो भविष्यत्में कट अर्थात् चटाई बनेगी उसमें ) इस वचनका अनुसरण करके उत्पन्न होनेवाले घटमें उत्पन्न हुआ ऐसा यद्यपि कहा जाता है; परन्तु व्यवहारनयसे "उत्पन्न होता है; उत्पन्न हुआ और उत्पन्न होगा तथा नष्ट होता है, नष्ट हुआ और नष्ट होगा इस विभक्तिसे जो कालत्रय( तीनकाल)का प्रयोग है; वह प्रयोग प्रतिक्षणमें पर्यायोंकी उत्पत्ति तथा नाशरूप मतको कहनेवाला जो ऋजुसूत्र नय है; उससे अनुगृहीत ( प्राप्त ) जो व्यवहार है; उस व्यवहारनयको ग्रहण करके कहा जाता है; यह कैसे कि-ऋजुसूत्रनय तो समय प्रमाण वस्तुको मानता है; उसमें जो पर्यायके वर्तमान उत्पत्ति तथा नाश विवक्षित हैं; उन्हींको लेके उत्पन्न होता है; नष्ट होता है; ऐसा कथन करना योग्य है । और वर्तमान पर्यायमें जो भूतत्व है; उसको लेकर उत्पन्न हुआ नष्ट हुआ ऐसा कथन होता है; और उसीमें जो भूतत्व है; उसको अनागत ( भविष्य )की तरह विचार कर उत्पन्न होगा नष्ट होगा ऐसा कथन किया जाता है; तात्पर्य यह कि वर्तमानकाल ही भूतकी अपेक्षासे भविष्य है; आगामी कालकी अपेक्षासे वही भूत है; और वर्तमान तो वह स्वयं है; एवं एक कालमें ही सर्वत्र तीनों कालका भी व्यवहार हो सकता है । इसी प्रकारसे अनागत कालमें भी यह सब व्यवस्था स्यात् शब्दके प्रयोगसे संभवती है; अर्थात् कथंचित् ( किसी अपेक्षासे ) भूतकाल इत्यादि कथन युक्त है; क्योंकि सभी कालमें सब कालका व्यवहार हो सकता है ॥ ११ ॥
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