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________________ [ १४५ द्रव्यानुयोगतर्कणा उत्पन्नकलशे स्वार्थस्योत्पत्तिविगमौ कथम् । शृण्वाद्यौ मिश्रितौ ध्रौव्ये शक्त्या चानुगमाख्यया ॥१०॥ भावार्थः-उत्पन्न घटमें निजद्रव्यसंबन्धकी उत्पत्ति तथा नाश कैसे हो सकते हैं ? इस प्रश्नका उत्तर सुनो कि-उत्पत्ति तथा नाश यह दोनों एकतारूपशक्तिसे ध्रौव्यमें मिले हैं ॥ १०॥ व्याख्या। उत्पत्तिर्जाता यस्येत्युत्पन्नो घटस्तस्मिन्न त्पन्नघटे द्वितीयादिक्षणे स्वार्थस्य स्वद्रव्यसंबद्धज्योत्पत्तिनाशो कथं भवतो यतो हेतोः प्रथमक्षणसंबन्धरूपोतरपर्यायोत्पत्तिरस्ति सैव पूर्वपर्यायनाशता इत्थं युष्माभिः पुरा स्थापितमस्ति ? इत्येतत्प्रश्नः शिष्येण कृतस्तदा गुरुः कथयति । हे शिष्य ? शृणु। तद्यथाप्रथमक्षणे जातावुत्पत्तिविनाशो ध्रौव्ये मिश्रितो मिलितावनुगमाख्यया शक्त्यैकतालक्षणया शक्त्या नित्यो स्तः । असत्यप्याद्य क्षण उपलक्षणीभूय आगामिनि क्षणे द्रव्यरूपेण तत्संबन्धतामनुभवतः । उत्पन्नो घटो नष्टो घट इति सर्वप्रयोगात् । अथ चेदानीमुत्पन्नो नष्ट इत्येवं प्रतिपाद्यते तदा त्वेतत्क्षणविशिष्टता उत्पत्तिनाशयोरेवास्ति तच्च द्वितीयादिक्षणे नास्ति । अतो द्वितीयादिक्षण इदमुत्पन्न मित्यादिप्रयोगोऽपि न स्यात् । घट इति शब्देनेह द्रव्यार्थादेशेन मृदव्यं ग्राह्यम् । तत उत्पत्तिनाशाधारता सामान्यरूपेण तत्प्रतियोगिता विशेषरूपेण च कथनीयेति भावः ॥१०॥ व्याख्यार्थः-जिसकी उत्पत्ति होगई है; ऐसा जो घट है; उस उत्पन्न घटमें उत्पत्ति के द्वितीयआदि क्षणमें स्वार्थ के अर्थात् निजघटरूप द्रव्य के संबन्धके उत्पत्ति नाश कैसे होते हैं; क्योंकि-प्रथमक्षणसंबन्धरूप उत्तर पर्यायकी जो उत्पत्ति है; वही पूर्वपर्यायकी नाशता है; ऐसा आप पूर्व प्रसंगमें स्थापित कर चुके हैं ? ऐसा प्रश्न शिष्यने किया उसपर गुरु उत्तर देते हैं; कि-हे शिष्य ? उत्तर सुनो-वह उत्तर इस प्रकार है; कि-प्रथम क्षगमें जो उत्पत्ति विनाश हुये हैं; वह अनुगमानामिका अर्थात् एकतास्वरूप शक्तिसे धोव्यमें मिले हुये हैं; और नित्य हैं, तथा प्रथम क्षणके न होनेपर भी उत्पत्ति और नाश दोको उपलक्षणीभूत होकर आगामी क्षणमें द्रव्यरूपसे उसकी संबन्धताका अनुभव करते हैं। क्योंकि"उत्पन्नो घटः, नष्टो घटः" "घट उत्पन्न हुआ, घट नष्ट हुआ" इत्यादि प्रयोग सवत्र देखा हैं। और यदि ऐसा कहते हो कि-'इस समय घट उत्पन्न हुआ, इस समय नष्ट हुआ तब तो उत्पत्ति और नाशके इस (प्रथम) क्षणकी विशिष्टता ही होगई क्योंकि-वह उत्पत्ति नाशकी विशिष्टता द्वितीयआदि झगमें नहीं है; इसलिये द्वितीयआदि क्षणमें "यह उत्पन्न हुआ" इत्यादि प्रयोग भी न होगा. तथा घट इस शब्दसे यहांपर द्रव्यार्थके आदेशसे मृत्तिकारूप द्रव्यका ग्रहण करना योग्य है। इससे मृत्तिका सामान्यरूपसे घटकी उत्पत्ति तथा नाशका आधार है; और विशेष (घट )रूपसे उत्पन्न हुआ तथा नष्ट हुआ ऐसा प्रयोग भी होता है; ऐसा कथन करना योग्य है ॥ १०॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001655
Book TitleDravyanuyogatarkana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhojkavi
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1977
Total Pages226
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Religion, H000, & H020
File Size19 MB
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