________________
१४२ ]
श्रीमद्रराजचन्द्रजैनशास्त्रमालायाम्
जो ज्ञान स्वभाव है; उससे शक्ति अर्थात् शोक प्रमोदआदिके संकल्पकी कल्पना होती है; ऐसा कहो तो बाह्य वस्तुका नाश हो जाने से घट पटआदि निमित्त विना केवल वासनाविशेषसे घट पटआदि आकाररूप परिणाम नहीं उत्पन्न होता है; और घट पटादि निमित्त विना ही वासनाविशेषसे घटपटादिके आकारका ज्ञान होवे तो समस्त बाह्य वस्तुका नाश हो जायगा । यह तात्पर्य है; और कारणके विना घटपटादिके आकारका ज्ञान भी नहीं हो सकता । तथा आन्तरंगिक और बाह्य आकार के विरोधसे बाह्य आकारको मिथ्या कहनेवाले बौद्धके मतसे चित्र ( चित्राम ) के पदार्थ ( तसवीर वगैरह ) में रहनेवाला नील, पीत (पीला) आदि वर्णोंके आकारका ज्ञान भी मिथ्या ही होता है । एवं उषा ( दिन ) आदि आकार तथा नीलआदिका आकार भी विरुद्ध ही होता है । तब अर्थात् वासनाके ही विशेषसे आकारका परिणाम तथा आकारका ज्ञान होता है; बाह्य निमित्तकी उसमें कोई आवश्यकता नहीं है; ऐसा मानने से सबको शून्य कहनेवाला जो माध्यमिक बौद्ध है; उसका मत आता है; क्षणिकवादीका मत नहीं रहता । और कहा है; कि यदि वासना है; तो क्या नहीं होगा अर्थात् सब कुछ हो जायगा और जो बाह्य पदार्थ तो है; और वासना नहीं है; तो उन बाह्य पदार्थोंसे क्या हो सकता है; अर्थात् कुछ भी नहीं हो सकता । क्योंकि — वासनाके विना वह बाह्य पदार्थ बुद्धिमें ही नहीं आसकते हैं; इसलिये जो वासना पदार्थोंको स्वयं रुच रही है; उसको दूर करनेवाले हम कौन हैं ॥ १ ॥ और शून्यवाद भी प्रमाणकी सिद्धि तथा असिद्धिरूप जो दो पक्ष हैं; उनसे खंडित है । इस कारण सर्वज्ञवीतरागप्रणीत शुद्धस्याद्वाद के धारक संपूर्ण नयोंका आदर करना चाहिये ॥ ७ ॥
पुनस्तदेव कारणमिति ।
पुनः “कारणं" इत्यादि सूत्रसे उसी विषयको कहते हैं ।
कारणं घटनाशस्य मौल्युत्पत्त र्घटः स्वयम् ।
एकान्तवासनां तत्र दत्ते नैयायिकः कथम् ॥ ८ ॥
भावार्थ:-- घटके नाश तथा मुकुटकी उत्पत्ति में स्वयम् घट ही कारण हैं, जब ऐसा है; तब नाश तथा उत्पत्ति में एकान्त ( सर्वथा ) भेदकी वासना नैयायिक कैसे देता है; अर्थात् उत्पत्ति और नाशका सर्वथा भेद क्यों मानता है ॥ ८ ॥
व्याख्या । एवं शोकादिकार्यत्रयस्य भेदेनोत्पादव्ययधीव्याणि साषितानि, अत एव घटमाशस्य हेमघटनाशस्य हेममुकुटोत्पत्तेश्च कारणं हेतुरेकः स्वयं घट एव 1 हेमघटना शामिहेममुकुटोत्पत्तिविषये हेमघटावयवविभागादिको हेतुरेव । अत " खण्डपटे
एव
महापटनाशा मिन्नखण्डहेतुतात्र
पटोत्पत्तिविषयेऽप्येका दितन्तुसंयोगापगमहेतु रेवास्ति
Jain Education International
I
For Private & Personal Use Only
महापटनाशस्य
www.jainelibrary.org