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द्रव्यानुयोगतर्कणा
[ १३५ भावार्थ:-जैसे श्रीजिनभगवान् एक पदार्थको तीन लक्षणोंसे युक्त कहते हैं; उसी रीतिसे पदार्थको चाहताहुआ भव्य सब अभिलषित वस्तुको प्राप्त होता है ॥१॥
व्याख्या । एकोऽद्वितीयोऽर्थो जीवपुद्गलादिर्घटपटादिर्वा यथा येन प्रकारेण त्रिभिल्लक्षणरुत्पादव्ययध्रौव्याख्यः सहितो युक्तः श्रीजिनः परमेश्वरैः कथ्यते भण्यते वाक्यप्रबन्धेन । यतः-"उत्पन्ने इवा १ धुवे इवा २ विगमे इवा ३' इति त्रिपदीमूलात्पदार्थः सर्वोऽपि त्रिविध इत्यर्थः । तथेति उक्तप्रकारेण अर्थ पदार्थमन्विच्छन् वाञ्छन् धारयन् सकलेप्सितं सर्ववाञ्छितं सम्यक्त्वादिसिद्धिपर्यन्तं कामं प्राप्नोति भव्य इति पद्यार्थः । भावार्थस्तत्वयम-एतस्यां त्रिपद्यां सवेषामर्थानां व्यापकत्वमवधारणीयम् । जिनमते केचित्पदार्था नित्याः, केचिदनित्या इत्थं नैयायिकादयः कथयन्ति तद्वन्नास्ति । नित्यकान्तानित्यैकान्तपक्षयोरपि लोकयुक्त्यापि विरोधो दृश्यते । ततो दीपादारभ्याकाशपर्यन्तमुत्पादव्यय ध्रौव्यलक्षणं प्रमाणयितव्यम् । तदुक्त श्रीहेमाचार्य:"आदीपमाव्योम समस्वभावं स्याद्वादमुद्रानतिभेदिवस्तु । तन्नित्यमेवैकमनित्यमन्यदिति त्वदाज्ञाद्विषतां प्रलापः" ॥१॥
व्याख्यार्थः-एक अर्थात् दूसरेसे रहित केवल एक जीव पुद्गलआदि तथा घट पटआदि पदार्थ जिस रीतिसे उत्पत्ति, नाश और ध्रौव्यरूप तीनों लक्षणोंसे संयुक्त श्रीजिन परमेश्वर वाक्यप्रबंधसे कहते हैं; अर्थात् कथंचित् उत्पन्न होता है; कथंचित् नष्ट होता है; और कथंचित् ध्रौव्य है; इस प्रकार जो तीन पदोंका मूलसूत्र है; उससे सब पदार्थ तीन प्रकारका है । उसी श्रीजिनेन्द्रके कहे हुए प्रकारसे पदार्थको चाहता हुआ अर्थात् अन्तःकरणमें धारण करता हुआ भव्यप्राणी संपूर्ण अभीष्टको अर्थात् सम्यग्दर्शनको आदि ले मुक्तिपर्यन्त कामनाको प्राप्त होता है; बस यही श्लोकका अर्थ है । आशय तो यह है; कि-इस त्रिपदीमें संपूर्ण पदार्थों की व्यापकताका निश्चय करना चाहिये । क्योंकि-कोई पदार्थ नित्य है; कोई पदार्थ अनित्य है; ऐसा जो नैयायिकआदि कहते हैं; उसके समान जिन मतमें कोई पदार्थ नहीं है । और नैयायिकआदिके अभिमत जो एकान्त नित्य तथा एकान्त अनित्य पक्ष हैं; इन दोनोंमें ही लोकयुक्तिसे भी विरोध देखा जाता है । इसलिये दीपसे लेकर आकाशपर्यन्त संपूर्ण पदार्थ पूर्वोक्त उत्पाद, व्यय तथा ध्रौव्यरूप विविध लक्षणसहित प्रमाणभूत करना चाहिये । वही विषय श्रीहेमाचार्यजीने कहा है; कि-दीपकसे लेकर आकाशपर्यन्त समस्त पदार्थ एक स्वभावके धारक हैं; और स्याद्वादमुद्राका उल्लंघन नहीं करते हैं; इसलिये उनमें एक नित्य ही है, दूसरा अनित्य ही है, इस प्रकार जो कथन है सो आपकी आज्ञासे विरोध रखनेवालोंका प्रलाप है ॥१॥
अथैनमेवार्थ विवृत्य कथयन्नाह । अब इसी त्रिविधलक्षणतारूप अर्थका विवरण करके निरूपण करते हैं।
उत्पादध्र वनिर्णाशः परिणामः क्षणे क्षणे। द्रव्याणामविरोधाच्च प्रत्यक्षादिह दृश्यते ॥२॥
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