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द्रव्यानुयोगतर्कणा
[ १०७ मूर्त कथितं तत् मूर्तविषयलोकमनस्कारादिकेभ्य उत्पन्नं तस्मान्मूर्त वस्तुतस्तु मतिज्ञानमात्मगुणस्तस्य चापौग्दलिकस्य मूर्तिमत्पुद्गलगुणोपचारः कतः । स तु विजात्या असद्भ तव्यवहारः ॥११॥
व्याख्यार्थः--जैसे वही असद्भ तव्यवहार विजाति अर्थात् अन्यजातिसे भी है । जैसे मति मूर्तिमती है; अर्थात् मतिज्ञान मूर्त्त ( आकारसंयुक्त ) कहा गया है। वह मूर्त विषय लोक तथा मनस्कारआदिसे उत्पन्न हुआ है; इस कारण मूर्त है । यथार्थमें तो मतिज्ञान आत्माका गुण है; अतः वह अपौद्गलिक है; अर्थात् पुद्गलसे उत्पन्न हुआ नहीं है; उस अपौद्गलिक मतिज्ञानके मूर्तिमान् पुद्गलगुणका उपचार किया गया है; और यह उपचार चेतन धर्मसे विजातीय मूर्त्तिमान पुद्गल गुण है; इस कारण विजातिसे असद्ध तव्यवहार है ॥ ११॥
अथ तृतीयमाह । अब असद्भ तव्यवहारका तृतीय भेद कहते हैं।
स्वजात्या च विजात्यापि, असद्भूतस्तृतीयकः ।
जीवाजीवमयं ज्ञानं व्यवहाराद्यथोदितम् ॥१२॥ भावार्थः-स्वजातिसे तथा विजातिसे तृतीय असद्भूतव्यवहार प्रवृत्त होता है । जैसे व्यवहारसे जीव तथा अजीवमय ज्ञान कहा गया है ॥ १२ ॥
व्याख्या । स एव पुनरसद्भूतव्यवहारः स्वजात्या विजात्या च सम्बन्धितः कथितः । यथा जीवाजीवविषयं मति ज्ञानं । अत्र हि जीवो मतिज्ञानस्य स्वजातिरस्स्त यात्मनो ज्ञानमयस्वान, अजीवो मतिज्ञानस्य विजातिरस्ति । यद्यपि मतिज्ञानस्य विजातिरस्ति । यद्यपि मतिज्ञानादिविषयीभूतघटोऽयमिति ज्ञानम । तथापि विजातिर्जडचेतनसंबन्धात् । अनयोजिवयोविषय-विषयिभावनामा उपचरितसम्बन्धोऽस्ति । स हि स्वजातिविजात्यसद्भूतव्यवहारोऽस्ति तद्भानमेव ज्ञेयम् । स्वजात्यंशे किन्नायं सद्भूत इति चेद्विजात्यशे विषयतासंबन्धस्योपचरितस्यैवानुमवादिति गृहाणेति । व्यवहाराद्यथोदितं तथा विचारयेति पद्यार्थः ॥१२॥
व्याख्यार्थः-स्व ( निज ) जाति तथा विजाति ( परजाति ) से संबन्धयुक्त होनेसे तृतीय असद्भ तव्यवहार कहा गया है । जैसे “मतिज्ञान जोब अजोव विषयक है, इस वाक्यमें जीव तो मतिज्ञानका स्वजाति है; क्योंकि-आत्मा ज्ञानस्वरूप ही है । ओर अजोव मतिज्ञानका विजाति है। यद्यपि “अयं घट;" यह घट है; यह ज्ञान मतिज्ञानआदिका विषयभूत है; तथापि यह विजाति है; क्योंकि-इस ज्ञानमें जड़ तथा चेतनका सम्बन्ध है। इन जीव तथा अजीवका विषयविषयीभावनामक उपचरित संबन्ध है; और वही सजातिविजातिसंबन्धी असद्भ तव्यवहार है। इसलिये असद्भ तका ही भान होता है; ऐसा समझना चाहिये । यदि ऐसा कहो कि-स्वजात्यंशमें यह सद्भत क्यों नहीं ? तो यह
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