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द्रव्यानुयोगतर्कणा।
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कहते हैं। जिसके द्वारा व्यवहार किया जाय वह व्यवहार कहलाता है। सद्भत तथा व्यवहार इन दोनों शब्दोंका द्वन्द्वसमास करके सद्भ तव्यवहार यह एक शब्द बना । यह शुद्ध तथा अशुद्ध सद्भतव्यवहार जिसके हैं; वह सद्भ तव्यवहारवान है। इनमेंसे शुद्ध धर्म धर्मीके भेदसे तो उत्पन्न शुद्धसद्भ तव्यवहार और 'अशुद्ध धर्म धर्मीके भेदसे उत्पन्न अशुद्धसद्भ तव्यवहारनामक सद्भुतव्यवहारका भेद है। सद्भत तो एक द्रव्य ही है; उससे भिन्न द्रव्यके संयोगकी अपेक्षा नहीं है। और जो व्यवहार है; वह भिन्न द्रव्यके संयोगकी अपेक्षासे होता है। इस प्रकार सद्भतव्यवहारशब्दकी व्युत्पत्ति ( अर्थ ) है ॥१॥
उपाहरणमाह । अब शुद्धसद्भ तव्यवहारका उदाहरण देते हैं।'
ज्ञानं यथात्मनो विश्वे केवलं गुण इष्यते ।
मतिज्ञानादयोऽप्येते तथैवात्मगुणा भुवि ॥२॥ भावार्थः-जैसे इस संसारमें आत्माका केवलज्ञान गुण है, वैसे ही मति ज्ञान आदि भी पृथ्वीपर आत्माके ही गुण हैं ॥२॥
व्याख्या। यथा विश्व जगत्यात्मनः केवलं ज्ञानं गुण इति षष्ठीप्रयोगः । इदमात्मद्रव्यस्य ज्ञानमिति । तथा मतिज्ञानादयोऽथात्मद्रव्यस्य गुणा इति व्यवह्रियते । केवलज्ञानं यद्वर्त्तते स एव शुद्ध आत्मास्ति मत्यादयो ज्ञानानि केवलावरणविशेषिता व्यवहारा अशुद्धा लक्ष्यन्त इति ॥ ३ ॥
व्याख्यार्थः-जैसे इस संसारमें आत्माका केवलज्ञान गुण है, "आत्मनः" यह षष्ठी विभक्तिका प्रयोग सूत्रमें किया है, अर्थात् यह केवलज्ञान आत्मद्रव्यका गुण है, इसी प्रकार मति ज्ञानआदि भी आत्मद्रव्यके ही गुण हैं, ऐसा व्यवहार लोक में होता है । केवलज्ञान जो है, सो हो शुद्ध आत्मा है, केवलावरणविशिष्ट जो मति ज्ञानआदि हैं, वह व्यवहाररूप हैं, अतः अशुद्ध आत्मगुण है ॥ २ ॥
गुणो गुणी च पर्यायः पर्यायी च स्वभावकः ।
स्वभावी करकस्तद्वानेकद्रव्यानुगा विधाः ॥३॥ भावार्थः-गुण, गुणी १ पर्याय, पायी २ स्वभाव, स्वभावी ३ कारक तथा कारकवान् ४ ये सब भेद एक द्रव्यकेही अनुगामी हैं ॥३॥
व्याख्या। गुणो रूपादिः, गुणी घट: १ पर्यायः मुद्राकुण्डलादिः, पर्यायी कनकम् २ स्वभावो ज्ञानम्, स्वभावी जीवः ३ कारकश्चक्रदण्डादिः, कारकी कुलाल: ४ अथवा गुणगुणिनी १ क्रियाक्रियावन्तौ २ जातिव्यक्ती ३ नित्यद्रव्यविशेषौ चेति ४ एवं एकद्रव्यानुगतभेदा उच्यते । ते सर्वेऽप्युपनयस्यार्था ज्ञातव्या: । अवयवावयविनाविति । अवयवादयो हिं यथाक्रममवयव्याद्याश्रिता एव तिष्ठन्तेऽविनश्यन्तो, विनश्यदवस्थास्त्वनाश्रिता एव तिष्ठन्त इत्यादि ॥ ३ ॥
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