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श्रीमद्रराजचन्द्र जैनशास्त्रमालायाम्
निर्युक्ति में कहा है; कि - दृष्टिवादनामक अंगमें सूत्र और अर्थके कथन केलिये इनसे ही प्ररूपण है; और यहां मोक्षका अधिकार है; इसलिये अत्यन्तोपयोगी अर्थात् सारभूत हैं ॥ १ ॥ इस कारण इन नयोंको ही पूर्णरूपसे जान कर बुद्धिमान् प्राणी सब प्रकार से समर्थ श्रीजिनदेव के चरणकमलयुगलका आश्रय करें ॥ १७ ॥
इतिश्रीठाकुरप्रसादशास्त्रिप्रणीत भाषाटीकासमलङक्तायां द्रव्यानुयोगतर्कणायाँ
षष्ठोऽध्यायः ॥ ६ ॥
अथोपनयानां प्रकारमाह ।
अब उपनयोंके भेद कहते हैं ।
और धर्मी
भेदाच्छुद्धस्तथाशुद्धः सभूतव्यवहारवान् ॥१u
भावार्थः—तीन ३ उपनय हैं; उनमें प्रथम उपनय सद्भूतव्यवहार है; वह धर्म भेदसे शुद्धसद्ध तव्यवहार तथा अशुद्धसद्ध तव्यवहार इन भेदोंसे दो प्रकार
है ॥ १ ॥
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त्रयश्चोपनयास्तत्र प्रथमो धर्मधर्मिणोः ।
। तत्रेयधिकारसूचकविषयसप्तमीयम् । नयानां समीपमुपनयास्त्रस्त्रियसंख्याकाः । तेषु त्रिषु प्रथम आद्य धर्मश्च धर्मी च तयोर्भेदस्तस्मात् । धर्मधर्मिणोरसाधारणं कारणं धर्मः, स च धर्मोऽस्यास्तीति धर्मी तयोरितिद्वन्द्वसमासेन भेदात् द्विधा द्विप्रकारः । एतावता यः प्रथमो भेदो धर्मधर्मिभेदाञ्जातः सोऽपि द्विविधो ज्ञेय एकः शुद्धोऽपरो द्वितीयोऽशुद्धः । कथंभूतः शुद्धस्तथाशुद्धञ्च सद्भूतव्यवहारवान् सद्भयतेऽनेनेति सद्भतः, व्यवह्रियत इति व्यवहारः सद्भूतश्च व्यवहारश्व सद्भूतव्यवहारौ । शुद्धाशुद्धौ तो विद्यतेऽस्येतिसद्भूतव्यवहारवान् । शुद्धयोर्धर्मधर्मिणोर्भेदाच्छुमभूतव्यवहारः ॥ १ ॥ अशुद्धधर्मधर्मिणोर्भेदादशुद्धसद्भूतव्यवहारः ॥२॥ सद्भूतस्त्वेकं द्रव्यमेवास्ति भिन्नद्रव्यसंयोगापेक्षयेत्येस्ति । व्यवहारस्तु भेदापेक्षयेत्येवं निरुक्तिः ॥ १॥ व्याख्यार्थ:: - तत्र ( उसमें ) यह जो सप्तमी विभक्ति है; वह अधिकारके ज्ञापन (जनाने) के लिये है; अर्थात् अब उपनयोंका अधिकार है । नयोंके समीपवर्ती जो हों वह उपनय हैं; वह तीन अर्थात् तीन संख्यायुक्त हैं, उन तीनोंमेंसे प्रथम भेद धर्म तथा धर्मीके भेदसे है; धर्म और धर्मी इन दोनोंमें जो असाधारण कारण है; उसको धर्म कहते हैं; वह असाधारण कारणरूप धर्म जिसके है; उसको धर्मी कहते हैं धर्म तथा धर्मिन् शब्दका द्वन्द्व समास करनेसे “धर्मधर्मिणोः " ऐसा पाठ बना है। इन धर्म धर्मीके भेदसे उत्पन्न हुआ प्रथम भेद दो प्रकारका है । अर्थात् धर्म धर्मके भेदसे जो प्रथम भेद हुआ है; वह भी दो प्रकारका जानना चाहिये। एक शुद्ध और दूसरा अशुद्ध । वह शुद्ध और अशुद्ध कैसा है; कि - सद्भतव्यवहारसे युक्त है । सद् जिसके द्वारा हो उसको सद्भत
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