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श्रीमद्राजचन्द्र जैनशास्त्रमालायाम्
अथ शब्दमयमाह। अब शब्दनयको कहते हैं।
शाब्दिको मनुते शब्दं सिद्ध धात्वादिभिस्तथा ।
भिन्न समभिरूढाख्यः शब्दथं तथैव च ॥१५॥ भावार्थः-शब्दनय धातुआदिसे सिद्ध शब्दोंको स्वीकार करता है; परस्तु लिंगवचनादिद्वारा शब्दभेदसे अर्थका भेद मानता है; और ऐसे ही समाभिरूढनय अर्थ भेद होनेसे शब्दभेद अवश्य मानता है ।। १५॥
व्याख्या । शाब्दिक: शब्दनयो थात्वादिमिः प्रकृतिप्रत्ययादिविमागेन व्युत्पन्न शब्दं सिद्ध मनुते परन्तु लिङ्गवचनादिभेदेनार्थस्य भेदं मनुते । यथा--तट: तटी, तटमिति लिङ्गत्रयभेदादर्थभेदः, तथा आपो जलमित्यत्र बहुवचनकवचनभेदादर्थभेद इति । अयं हि शब्दनयः ऋजुसूत्रनयं प्रतीदं वक्ति यत्कालभेदेन स्वमर्थभेदं मनुषे तर्हि लिङ्गादिभेदेनार्थभेदं प्रस्तुतमपि कथं न मनुष इति। अथ समभिरूढनयमाह । समभिरूढाख्यो नयः शब्दं मिन्न पुनश्चार्थमपि भिन्न मनुते । शब्दभेदेऽर्थभेद इति ब्र वन्नसो शब्दनयं प्रतिक्षिपति । तथा हि-यदि भवाल्लिङ्गादिमेदेनार्थभेदमङ्गीकरोति तदा शब्दभेदेनार्थभेदमपि कथं नाङ्गीकरोति तस्माद् घटो भिन्नार्थः, कुम्भो भिन्नार्थः, शब्दभेदादर्थभेद इति । शब्दार्थयोरैक्यं यदस्ति तत्त, शब्दादिनयानां वासनया वर्तते शब्दनयस्यैव भेद इति ज्ञेय इति . अथ च पर्यायशब्देषु निरुक्तिभेदेन भिन्नमथं समभिरोहन सममिरूढ इति । शब्दनयो हि पर्यायाभेदेऽप्यर्थभेदममिनीति, सममिरूढस्तु पर्यायभेदे भिन्नाननभिमन्यते । अभेदं त्वर्थगतं पर्यायशब्दानामुपेक्ष्यत इति ॥१५॥
व्याख्यार्थः-शब्दनय धातु, प्रकृति तथा प्रत्ययआदिके विभागसे व्युत्पन्न शब्दको सिद्ध मानता है; परन्तु लिंग, वचन, तथा धातुआदिके भेदसे अर्थका भेद मानता है। जैसे तटः यह पुल्लिंग, लटी यह स्त्रीलिंग तथा तटम् यह नपुंसकलिंगमें रूप होता है। यहाँ तीनों लिंगोंमें शब्दके स्वरूपमें भेद होनेसे अर्थका भेद मानता है। और आपः तथा जलम् ये दोनों शब्द यद्यपि पर्याय (एकार्थवाचक ) हैं; तथापि अप शब्द नित्य स्त्री लिंग ही है; और बहुवचन है; और जल शब्द नपुंसकलिंग तथा एकवचन है; इस हेतुसे (बहुवचन तथा एकवचनके भेदसे) अर्थ भेद है। और यह शब्दनय ऋजुसूत्र नयके प्रति यह कहता है; कि-यदि तुम कालके भेइसे पदार्थ का भेद मानते हो तो लिंग, वचनआकि भेदसे उपस्थित जो पदार्थभेद है; उसको भी क्यों नहीं मानते ? अब समभिरूढनामक नय शब्दको भिन्न और अर्थको भिन्न मानता है; क्योंकि-शब्दका भेद होनेपर अर्थका भेद है; ऐसा कहता हुआ यह नय शब्दनयके प्रति आक्षेप करता है; सो ही दिखाते हैं; कि-यदि आप लिंगादिके भेदसे अर्थ भेद मानते हो तो शब्दके भेदसे अर्थके भेदको भी क्यों नहीं अङ्गीकार करते ? शब्दभेदसे अर्थभेद अवश्य है; इसलिये घट
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