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श्रीमद्राजचन्द्रजैनशास्त्रमालायाम् करना इस प्रकारका जो आरोप है; वह तो द्रव्यके विषयमें हैं । इसलिये यहांपर प्रगुणका अनुसंधान भी नहीं करना चाहिये, किन्तु जिस पदार्थका कालावच्छेदसे विचार कियाजाय तो उसको अन्य दूसरे कालसे ही दिखलाना चाहिये । इस कारण यहांपर भूत काल जो है; उसके सदृश नामके धारक वर्तमानकालको पाकर उस भूतकालका स्मरण किया जाता है। इस कारण भूतमें वर्तमानकालके आरोपकी प्रतीति उत्पन्न होती है । अथवा अतीत ( गये हुए ) दीपोत्सवमें वर्तमान दीपोत्सवका आरोप इस नंगमनयसे करते हैं । और वर्तमान दिनमें भूत दिनका आरोप करते हैं । और यह आरोप किसी कार्यकेलिये किया जाता है । और वह कार्य यह है; कि - जिस समय भगवानका निर्वाण हुआ उस समय अनेक देवताओंका यहांपर समागमन हुआ और उस दिन जो देव आदिका आगमन हुआ तथा उन्होंने आकर जो महामहोत्सव आदिकी रचना की जिससे उस दिनकी प्रतीति उत्पन्न हुई । इसलिये प्रतीतिरूप प्रयोजनकेलिये भूतमें वर्तमानत्वका आरोप कियागया है। जैसे कि-"गंगामें घोष ( अहीरोंका ग्राम ) है" यहांपर गंगाजीके तटमें गंगारूप अर्थका आरोप किया जाता है; और वह आरोप शैत्य ( ठंडापन ) पावनत्व ( पवित्राना ) धर्मको अधिकता द्योतनरूप प्रयोजनकेलिये किया गया है, इसी प्रकार यहां भी प्रयोजन संघटित हो सकता है । यदि श्रीमहावीरस्वामीके मुक्तिमें जानेसे उसके अन्वगको प्रीतिआदिके विषयमें अनुभवका हेतु होनेसे अधिक भक्तिके लाभार्थ प्रतीतिका विचार किया जाय तो उस दिनमें सम्यक् प्रकारसे उदयको प्राप्त प्रतीतियुक्त वर्तमान दिवस भी अन्वयसे आरोपित किया जाता है । और उस कल्याण दिनकी सत्ताहीसे भक्तिआदि लाभकी जो सत्ता है; सो ही अन्वय है। क्योंकि " तत्सत्त्वे तत्सत्त्वमन्वयः " अर्थात् “उसके होनेपर उसकी सत्ता अर्थात् कारणके रहनेपर कार्यकी सत्ता” इत्यादि वचन तथा न्यायसे यहां आरोपका अन्वय करना चाहिये । और यथार्थ में तो भूत पदार्थों में वर्त्तमानके आरोपकेलिये जो तत्पर है; वही भूतनैगम प्रथम भेद है। जैसे आज दीपोत्सव दिन है; इसी दिन श्रीमहावीरस्वामीने मोक्षको प्राप्त किया है। यहां भूत दिनसे उपलक्षित श्रीवीरका मोक्ष कल्याणकको प्राप्त होना वर्तमानमें उसी ( दीपोत्सव ) नामक दिनको प्राप्त होनेपर महाकल्याणककी प्रतीतिके प्रयोजनकेलिये आरोपित है; यह संक्षेपसे भूतनैगमनयका मार्ग दर्शायागया है। और अलंकारशास्त्रमें प्रवीण जनोंको इस अथमें अलंकारका ग्रन्थ भी देखना उचित है ॥९॥
अथ नैगमस्य द्वितीयभेदमुदाहरति । अब नैगमनयके द्वितीय भेदका उदाहरण कहते हैं।
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