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द्रव्यानुयोगतर्कणा [ ८५ raise प्रगुणोऽपि नानुसन्धेयः किश्व | कालावच्छेदेन विचार्यमाणः पदार्थः कालान्तरेण प्रदर्शनीय स्तेनात्र भूतकालो हि तत्सदृशनामवर्तमानकालमुपलक्ष्य स्मर्यतेऽतो भूते वर्त्तमाना रोपप्रतीतिरुत्पद्यते । अथवातीतदीपोत्सवे वर्त्तमानदीपोत्सवस्यारोपं कुर्वन्ति, पुनश्च वर्त्तमानदिने भूतदिनस्यारोपं कुर्वन्ति, कस्मैचित्कार्याय, तत्वार्यन्विदम् - यदा भगवतो निर्वाणं जातम् त्वानेव सुरसम्पातो जातः, सुराद्यागमनमहामहोत्सवादिविरचनेन व तद्दिनप्रतीतिर्जाता अतः प्रतीतिप्रयोजनाय भूते वर्तमानारोपः । यथा "गङ्गायां घोष: " अत्र गङ्गायामिति पदेन गङ्गातटे गङ्गाया आरोप: क्रियते । तत्त शैत्यपावनत्वादिप्रत्यायन प्रयोजनाय । तद्वदिहापि घटमानमस्ति । यदि वीरस्य सिद्धिगमनेनान्वयानुभावकत्वात्प्रकर्षभक्तिलाभाय प्रतीतिर्विचिन्त्यते, तर्हि तत्तद्दिनसमुदितप्रतीतियुक्त वर्त्तमानदिनमप्यन्वयेनारोप्यते "तत्सत्त्वे तत्सत्त्वमन्वय" इति वचनन्यायाभ्यां समन्वेतव्यम् । वस्तुतस्तु "वर्त्तमानापकृते" वर्त्तमानारोपाय "भूतार्थेषु" भूतविषयेषु तत्परो लीनो भूतनैगमः प्रथमः । यथा दीपोत्सवदिनमद्य वर्त्तते, अत्र वीरेण शिवं प्राप्तमित्य तीतदिन लक्षितवीरनिर्वाणकल्याणकत्वं वर्तमानतन्नामदिन प्राप्तावारोपितं महाकल्याणकप्रतीतिप्रयोजनायेति दिक् । अलङ्कारनिपुणैरत्रार्थेऽलङ्कारग्रन्थोऽपि
द्रष्टव्यः ॥ १० ॥
आगमनरूप महाकल्याणका भाजन
व्याख्यार्थ :- जैसे संपूर्ण रोगोंसे अर्थात् कर्मरूप प्रपंचोंसे रहित होकर श्रीमहावीर जिनेश्वर इस दीपोत्सव ( दीपमालिका ) के दिनमें मोक्षको गये हैं । यहां पर महावीर भगवान्का मोक्ष कल्याणक अतीत दीपमालिका अर्थात् कई दीपमालिकाके पूर्व जो दीपमालिकाका दिन है; उसमें हुआ है, परन्तु " अस्मिन् " इस पदसे आज के ही दिनका अनुभव कल्पित किया गया है; इसलिये अतीत दीपमालिकामें वर्त्तमान दीपमालिCTET आरोप किया, और वर्त्तमान दिनके विषय में भूत दिनका आरोप तो उस दिन ( वर्त्तमान दीपमालिकाके दिन ) को देवताओंके न होनेपर और भूत दिन ( जिस दिन श्रीवीर भगवान् मोक्षको गये उस दिन ) को देवताओंके आगमनका भाजन होनेपर अर्थात् वर्त्तमान दिनमें तो देवआदि आके प्रभुके मोक्ष सन्बन्धी महाकल्याणक नहीं करते और भूत दिन ( जिस दिन मोक्ष गये उस दिन ) देवोंने आके महाकल्याणक किया था ऐसा व्यवहार दृष्ट होता है; इस लिये आरोप होता है, अर्थात् वर्त्तमान में ही भूतका आरोप होता है; क्योंकि - जो वह नहीं है; उसमें उसका जो धारण करना है; उसको आरोप कहते हैं; इसलिये यहाँ वर्त्तमान दीपमालिकामें भूत दीपमालिका महाकल्याणक नहीं है; तथापि इसमें उसको धारण करलिया अतः यह आरोप हुआ और जिस रज्जु ( डोर ) में सर्प नहीं हैं; अर्थात् जो रज्जू सर्परूप नहीं है; उसमें सर्पका आरोप करलेना अर्थात् उस रज्जुको भ्रमसे सर्प मान लेना अथवा जो सीप चाँदीरूप नहीं है; उसमें चाँदीका आरोप
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