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________________ तृतीय अध्याय शुद्धचिद्रूपकी प्राप्ति के उपायोंका वर्णन जिनेशस्य स्नानात् स्तुतियजनजपान्मंदिरार्चाविधानाचचतुर्धा दानाद्वाध्ययनखजयतो ध्यानतः संयमाच्च । व्रताच्छीला तीर्थादिकगमनविधेः क्षांतिमुख्यप्रधर्मात् क्रमाच्चिद्रपाप्तिर्भवति जगति ये वांछकारतस्य तेषां ।। १ ।। अर्थ :- जो मनुष्य शुद्धचिपकी प्राप्ति करना चाहते हैं उन्हें जिनेन्द्रका अभिषेक करनेसे, उनकी स्तुति, पूजा और जप करनेसे, मन्दिरकी पूजा और उसके निर्माणसे, आहार, औषध, अभय और शास्त्र - चार प्रकारके दान देनेसे, शास्त्रोंके अध्ययनसे, इन्द्रियोंके विजयसे, ध्यानसे, संयम से, व्रतसे, शीलसे, तीर्थं आदिमें गमन करनेसे और उत्तम क्षमा आदि धर्मीके धारनेसे क्रमशः शुद्धचिपकी प्राप्ति होती है । भावार्थ : - यदि वास्तव में देखा जाय तो शुद्धचिद्रूपके स्मरण करनेसे शुद्धचिपकी प्राप्ति होती है; परन्तु भगवानका अभिषेक, उनकी स्तुति और जप आदि भी चिपकी प्राप्ति में कारण है; क्योंकि अभिषेक आदि करनेसे शुद्धचिपकी ओर दृष्टि जाती है, इसलिये शुद्धचिद्रूपकी प्राप्ति के अभिलाषियोंको अवश्य भगवानके अभिषेक स्तुति आदि करने चाहिये ।। ११ । देवं श्रुतं गुरुं तीर्थं भदंतं च तदाकृतिं । शुद्धचिद्रूपसद्ध्यानहेतुत्वाद् भजते सुधीः ||२|| मुनि तथा इन -देव, शास्त्र, गुरु, तीर्थ और सबकी प्रतिमा शुद्धचिद्रूपके ध्यानमें कारण हैं विना इनकी अर्थ -: Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org •
SR No.001638
Book TitleTattvagyan Tarangini
Original Sutra AuthorGyanbhushan Maharaj
AuthorGajadharlal Jain
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages184
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Spiritual
File Size9 MB
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