SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 19
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १२] [ तत्त्वज्ञान तरंगिणी इसलिये वे चित्स्वरूपको भले प्रकार नहीं जानते और ज्ञानके न होनेसे उसके माहात्म्यको न जानकर उसे धारण भी नहीं कर सकते । भावार्थ:-जो मनुष्य जिस बातको जानता है, वही उसकी प्राप्तिके लिये उद्यम करता है और उसे प्राप्त कर सकता है । अज्ञानी मनुष्य अज्ञात पदार्थकी प्राप्तिके लिये न उद्यम कर सकता है और न उसे धारण ही कर सकता है । मैं शुद्धचित्स्वरूप हूँ, ऐसा चिद्रूपका मुझे ज्ञान है और उसके माहात्म्यको भी भले प्रकार समझता हूँ, इसलिये उसके द्वारा उससे उसकी प्राप्तिके लिये मैं उसे धारण करता हूँ; किन्तु जो मनुष्य चिद्रूपका ज्ञान नहीं रखता और चिद्रूपके माहात्म्यको भी नहीं जानता वह उसे धारण भी नहीं कर सकता ।।२०।। इस प्रकार मोक्षप्राप्तिके अभिलाषी भट्टारक ज्ञानभूषण द्वारा विरचित तत्त्वज्ञान तरंगिणीमें शुद्धचिद्रपका लक्षण प्रतिपादन करनेवाला पहला अध्याय समाप्त हुआ ॥१॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org .
SR No.001638
Book TitleTattvagyan Tarangini
Original Sutra AuthorGyanbhushan Maharaj
AuthorGajadharlal Jain
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages184
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Spiritual
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy