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[ तत्त्वज्ञान तरंगिणी प्रकारकी इच्छाओंसे रहित, समताके अवलंबी, तत्त्वोंके वेत्ता, तपस्वी, मौनी, कर्मरूपी हाथियोंके विदारण करने में सिंह, विवेकी और शुद्धचिद्रूपमें लीन हैं वे ही परमात्मपद प्राप्त करते हैं—वे ही ईश्वर कहे जाते हैं, अन्य नहीं ।। २० ।। इति मुमुक्षुभट्टारक श्री ज्ञानभूषण विरचितायां तत्त्वज्ञान तरंगिण्यां शुद्धचिद्रूपं लब्ध्यै परद्रव्यत्याग
प्रतिपादकः पंचदशोऽध्यायः ॥ १५ ॥ इस प्रकार मोक्षाभिलाषी भट्टारक ज्ञानभूषण द्वारा विरचित तत्त्वज्ञान तरंगिणीमें शुद्धचिद्रूपकी प्राप्तिके लिये परद्रव्योंके त्यागका प्रतिपादन करनेवाला पन्द्रहवाँ अध्याय समाप्त हुआ ॥ १५ ॥
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