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________________ -४२] नयचक्र निश्चयेन न कस्यचिदुत्पादो विनाशो वेति दर्शयति 'ण समुभवइ ण णस्सइ दव्वं सत्तं वियाण णिच्छयदो। उप्पादवयधुर्वेहि तस्स य ते हुति पज्जाया ॥४०॥ द्रव्यगुणपर्यायाणामभेदमाह *गुणपज्जयदो दव्वं दव्वादो ण गुणपज्जया भिण्णा । जम्हा तम्हा भणियं दव्वं गुणपज्जयमणण्णं ॥४॥ द्रव्यस्वरूपं निरूपयति ण विणासियं ण णिच्चं ण हु भेयं णो अभेयणाभावं। ण विसत्तं सव्वगयं दव्वं णो इक्कसब्भावं ॥४२॥ रहता। अत: यदि इनमें से एकको भी नहीं माना जायेगा तो शेषका मानना भी शक्य नहीं होगा। ये तीनों केवल उपचार मात्रसे नहीं हैं ,किन्तु वास्तविक हैं। आगे बतलाते हैं कि निश्चयनयसे न किसीका उत्पाद है और न व्यय परमार्थसे द्रव्य न उत्पन्न होता है और न नष्ट होता है। उसे सत्स्वरूप जानो। उत्पाद,व्यय और ध्रौव्यके द्वारा द्रव्यका उत्पाद व्यय होता है और वे पर्यायरूप है ॥४०॥ विशेषार्थ-यहाँ दोनों नयोंके द्वारा द्रव्यका स्वरूप कहा है। द्रव्य तो त्रिकाल, स्थायो, अनादि अनन्त है । उसका उत्पाद और विनाश उचित नहीं है। परन्तु पर्यायों के द्वारा उत्पाद,विनाश घटित होते हैं । अतः द्रव्याथिकनयकी दृष्टिसे द्रव्यको उत्पाद रहित, विनाश रहित सत्स्वभाववाला हो जानना चाहिए और पर्यायार्थिक दृष्टिसे उत्पादवाला,विनाशवाला जानना चाहिए । इस प्रकारके कथनमें कोई दोष नहीं है। क्योंकि द्रव्य और पर्यायमें अभेद है। आगे द्रव्यगुण पर्यायोंके अभेदको बतलाते हैं-- चूंकि गुण और पर्यायसे द्रव्य भिन्न नहीं है और द्रव्यसे गुण और पर्याय भिन्न नहीं है, इसलिए द्रव्यको गुण और पर्यायोंसे अभिन्न कहा है ॥४१॥ विशेषार्थ-जैसे मक्खन घी, दूध, दहीसे रहित गोरस नहीं होता, उसी प्रकार पर्यायोंसे रहित द्रव्य नहीं होता। और जैसे गोरससे रहित दूध दही घी मक्खन वगैरह नहीं होते, उसी प्रकार द्रव्यसे रहित पर्यायें नहीं होती। इसलिए कयनको अपेक्षा यद्यपि द्रव्य और पर्यायोंमें कथंचित् भेद है, तथापि उन सबका अस्तित्व जुदा नहीं है,वे एक दूसरेको छोड़कर नहीं रह सकते, इसलिए वस्तु रूपसे उनमें अभेद है। उसी तरह जैसे पुद्गलसे भिन्न स्पर्श, रस, गन्ध, वर्ण नहीं होते उसी प्रकार गुणोंके बिना द्रव्य नहीं होता। और जिस प्रकार स्पर्श, रस,गन्ध, वर्णसे भिन्न पुद्गल नहीं होता, उसी प्रकार गुणोंके बिना द्रव्य नहीं होता। इसलिए यद्यपि कथनकी अपेक्षा द्रव्य और गुणोंमें कथंचित् भेद है, तथापि उन सबका एक अस्तित्व नियत है,वे परस्पर में एक दूसरेको कभी नहीं छोड़ते, इसलिए वस्तु रूपसे द्रव्यगुणोंमें भी अभेद है ।। द्रव्यका स्वरूप कहते है द्रव्य न विनाशीक है, न नित्य है, न भेदरूप है, न अभेद रूप है, न असत् है, न व्यापक है और न एक स्वभाव है ॥ ४२ ॥ विशेषार्थ-द्रव्यका स्वरूप बतलाते हुए उसे विनाशीक (क्षणिक ) भी नहीं माना और नित्य भी नहीं माना। इसी तरह उसे भेद रूप भी नहीं माना और अभेदरूप भी नहीं माना। इसका मतलब यह १. 'उप्पत्तीव विणासो दव्वस्स य णत्थि अत्थि सम्भावो। विगमप्पादधुवत्तं करोति तस्सेव पज्जाया ॥११॥ -पञ्चास्ति । २. धुवेहि य आ०। ३. 'पज्जय विजुदं दव्वं दवविजुत्ता य पज्जया ण त्थि। दोण्हं अणण्णभूदं भावं समणा परूवेंति ॥१२॥ दव्वेण विणा ण गुणा गुणेहिं दव्वं विणा ण संभवदि । अन्वदिरित्तो भावो दम्वगुणाणं हवदि तम्हा ॥१३॥'-पञ्चास्तिः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001623
Book TitleNaychakko
Original Sutra AuthorMailldhaval
AuthorKailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages328
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Nyay
File Size8 MB
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