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नयचक्र
नहीं हो सकता। इसलिए उत्पाद, व्यय, ध्रौव्यका लक्षण है। अनादि प्रवाहरूप अखण्ड द्रव्यकी परम्परामें पूर्वपर्यायका विनाश व्यय है, उत्तर पर्यायका प्रादुर्भाव उत्पाद है । और पूर्वपर्यायका विनाश तथा उत्तर पर्यायका उत्पाद होनेपर भी अपनी जातिको न छोड़ना ध्रौव्य है। ये उत्पाद,व्यय,ध्रौव्य सामान्य कथनकी अपेक्षा द्रव्यसे अभिन्न हैं और विशेष कथनकी अपेक्षा द्रव्यसे भिन्न हैं, तीनों एक साथ होते हैं और द्रव्यके स्वभावरूप होनेसे वे उसके लक्षण हैं, द्रव्यका तीसरा लक्षण गुण और पर्याय है। अनेकान्तात्मक वस्तुमें पाये जानेवाले अन्वयी विशेषोंको गुण कहते हैं और व्यतिरेकी विशेषोंको पर्याय कहते हैं । अन्वयका मतलब है-एकरूपता या सदृशता । गुणोंमें सर्वदा एकरूपता रहती है परिवर्तन होनेपर भी अन्यरूपता नहीं होती, इसलिए उन्हें अन्वयी कहते हैं । किन्तु पर्याय तो क्षण-क्षणमें अन्यरूप होती रहती हैं. इसलिए व्यतिरेकी कहते हैं। इनमें-से गण तो द्रव्य में एक साथ रहते हैं और पर्याय क्रमसे रहती हैं। ये गुण पर्याय भी द्रव्यसे कथंचित् भिन्न और कथंचित् अभिन्न होते हैं, ये भी द्रव्यके स्वभावभूत है इसलिए द्रव्यका लक्षण है। द्रव्यके इन तीन लक्षणोंमें-से एकका कथन करनेपर बाकीके दो अनायास आ जाते हैं। यदि द्रव्य सत् है तो वह उत्पाद व्यय ध्रौव्यवाला और गुणपर्यायवाला होगा ही। यदि वह उत्पाद,व्यय,ध्रौव्यवाला है तो वह सत् और गुणपर्यायवाला होगा ही। यदि वह गुणपर्यायवाला है तो वह सत और उत्पाद व्यय ध्रौव्यवाला होगा। सत नित्यानित्य स्वभाववाला होनेसे ध्रौव्य को और उत्पाद व्ययरूपताको प्रकट करता है। तथा ध्रौव्यात्मक गुणोंके साथ और उत्पाद व्ययात्मक पर्यायोंके साथ एकताको बतलाता है। इसी तरह उत्पाद,व्यय,ध्रौव्य नित्यानित्यस्वरूप पारमार्थिक सत्को बतलाते हैं और अपने स्वरूपकी प्राप्तिके कारणभूत गुण पर्यायोंको प्रकट करते हैं। क्योंकि गुणोंके होनेसे ही द्रव्यमें ध्रौव्य होता है । और पर्यायों के होनेसे उत्पाद व्यय होता है। यदि द्रव्यमें गुणपर्याय न हों,तो उत्पाद व्यय, ध्रौव्य भी नहीं हो सकते । अतः द्रव्य उत्पाद,व्यय, ध्रौव्यवाला है,ऐसा कहनेसे द्रव्य गुणपर्यायवाला भी सिद्ध हो जाता है। और द्रव्य गुणपर्यायवाला है, ऐसा कहनेसे द्रव्य उत्पादव्यय-ध्रौव्यवाला है,ऐसा सूचित होता है तथा नित्यानित्यस्वभाव परमार्थ सत् है यह भी सूचित होता है। इस तरह द्रव्यके तीनों लक्षण परस्परमें अविनाभावी है-जहाँ एक हो वहाँ शेष दोनों नियमसे होते हैं। इसी तरह द्रव्य और गुण-पर्याय तथा उत्पाद-व्यय-ध्रौव्य भो परस्परमें अविनाभावी हैं। जो गुग और पर्यायों को प्राप्त करता है उसे द्रव्य कहते हैं, अतः जो एक द्रव्य स्वभाव है वह गुणपर्याय स्वभाव भी है और जो गुणपर्याय स्वभाव है, वह द्रव्य स्वभाव भी है। क्योंकि द्रव्य के बिना गुणपर्याय नहीं हो सकते और गुणपर्याय के बिना द्रव्य नहीं हो सकता। इसी तरह द्रव्य और गुणके बिना पर्याय नहीं होती और पर्यायोंके बिना द्रव्य और गुण नहीं होते। अतः जो द्रव्य-गुणस्वभाव है वह पर्याय स्वभाव भी है और जो पर्यायस्वभाव है वह द्रव्य गुणस्वभाव भी है। इसी तरह उत्पाद व्ययके बिना नहीं होता, व्यय उत्पादके बिना नहीं होता, उत्पाद और व्यय ध्रोव्यके बिना नहीं होते और ध्रौव्य उत्पाद तथा व्ययके बिना नहीं होता। तथा जो उत्पाद है,वही व्यय है, जो व्यय है वही उत्पाद है, जो उत्पाद और व्यय है वही ध्रौव्य है। और जो ध्रौव्य है वही उत्पाद और व्यय है। इसका स्पष्ट इस प्रकार है-जो घड़ेका उत्पाद है वही मिट्टोके पिण्डका व्यय है। क्योंकि भाव अन्यभावके अभावरूप स्वभाववाला है । जो मिट्टीके पिण्डका व्यय है वही घड़ेका उत्पाद है, क्योंकि अभाव भावान्तर भाव स्वभाव होता है। जो घड़ेका उत्पाद और पिण्डका व्यय है वही मिट्टीकी स्थिति (ध्रौव्य ) है। और जो मिट्रीकी स्थिति है वही घड़ेका उत्पाद और पिण्डका व्यय है। यदि ऐसा न माना जाये और उत्पादको अन्य, व्ययको अन्य और ध्रौव्यको अन्य माना जाये तो अनेक दोष उपस्थित होंगे जो इस प्रकार हैं - यदि व्यय और ध्रौव्य के बिना केवल घटका उत्पाद माना जायेगा, घटके उत्पत्ति-कारणका अभाव होनेसे या तो घट उत्पन्न ही नहीं होगा, क्योंकि मिट्टीकी स्थिति और उसकी पिण्डपर्यायके नाशके बिना घट उत्पन्न नहीं हो सकता और ये दोनों बातें आप मानते नहीं। ऐसी स्थिति में भी यदि घटकी उत्पत्ति मानी जाती है तो असतकी ही उत्पत्ति होगी। यदि असतकी भी उत्पत्ति मानी जायेगी तो आकाशपुष्ष, गधेके सींग जैसी असम्भव वस्तुओंकी भी उत्पत्ति माननी होगी। तथा उत्पाद और ध्रौव्यके बिना केवल व्ययको माननेपर व्ययके कारणका अभाव
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