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द्रव्यस्वभावप्रकाशक
षुद्गलगुणस्वभाव पर्यायान् निदर्शयति-
रूवरसगंधफासा जे थक्का तेसु अणुयदव्वेसु । ते चैव पग्गलाणं सहावगुणपज्जया णेया ॥ ३०॥
पुद्गल द्रव्यविभावपर्यायान्निरूपयति
'पुढवी जलं च छाया चउरिदियविसयकम्मपरमाणू । अइथूलथूलथूला सुहमं सुहमं च अइसहमं ॥३१॥
सम्बन्धसे ही स्कन्धों की उत्पत्ति होती है, अतः परमाणु कारण है । तथा स्कन्धोंके टूटनेसे परमाणु अपने परमाणु रूपको प्राप्त करता है, अत: परमाणु कार्य भी है ।
पुद्गलद्रव्यके गुणोंकी स्वभाव पर्याय बतलाते हैं
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[ गा० ३०
उन अणुरूप पुद्गलद्रव्योंमें जो रूप, रस, गन्ध और स्पशं गुण पाये जाते हैं वे ही पुद्गलद्रव्योंकी स्वभाव गुणपर्याय हैं । अर्थात् परमाणु पुद्गलद्रव्यकी स्वभावपर्याय है और परमाणुमें पाये जानेवाले गुणोंकी अवस्था पुद्गल द्रव्यके गुणोंकी स्वभाव पर्याय है ||३०||
पुद्गल द्रव्यकी विभाव पर्यायोंको कहते हैं
पृथ्वी, जल, छाया, चक्षुके सिवाय शेष चार इन्द्रियोंका विषय, कर्मवर्गणा के योग्य स्कन्ध और कर्मवाके अयोग्य स्कन्ध, ये पुद्गलकी विभाव पर्यायें हैं । इन्हें क्रमसे अतिस्थूल, स्थूल, स्थूलसूक्ष्म, सूक्ष्म और अतिसूक्ष्म कहते हैं ॥ ३१॥
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विशेषार्थ - नियमसार ( गा० २१ - २४ ) में स्कन्धके छह भेद किये हैं— अतिस्थूल स्थूल, स्थूल, स्थूलसूक्ष्म, सूक्ष्मस्थूल, सूक्ष्म और अतिसूक्ष्म । जो स्कन्ध छेदा भेदा जा सके और अन्यत्र ले जाया जा सके उसे अतिस्थूलस्थूल या बादरबादर कहते हैं; जैसे पृथिवी, पर्वत वगैरह। जिसे छेदा भेदा तो न जा सके, किन्तु अन्यत्र ले जाया जा सके उसे स्थूल या बादर कहते हैं जैसे घी, तेल, पानी वगैरह। जिसे न छेदा भेदा जा सके और न अन्यत्र ले जाया जा सके उसे स्थूलसूक्ष्म कहते हैं, जैसे छाया, धूप वगैरह । जो स्कन्ध नेत्र के सिवाय शेष चार इन्द्रियोंका विषय हो उसे सूक्ष्मस्थूल कहते हैं । जो स्कन्ध कर्मवर्गणाके योग्य होता है उसे सूक्ष्म कहते हैं । और जो स्कन्ध कर्म वर्गणाके अयोग्य होते हैं उन्हें अतिसूक्ष्म कहते हैं । नयचक्र के कर्ताने कर्मके बाद परमाणुको रखा है, किन्तु परमाणु तो पुद्गल द्रव्यकी स्वभावपर्याय है । विभावपर्याय नहीं है । विभावर्याय तो केवल पुद्गलस्कन्ध हैं । 'गोम्मट्टसार 'जीवकाण्डमें भी 'कम्मपरमाणु' पाठ है । किन्तु उसमें पुद्गल द्रव्य के छह भेद गिनाये हैं, उनमें एक परमाणु भी है और वह अतिसूक्ष्म है । तो पुद्गल द्रव्यके छह भेदोंमें तो परमाणुकी गणना हो सकती है, किन्तु पुद्गलद्रव्यकी विभाव पर्यायोंमें परमाणुकी गणना नहीं हो सकती । ऐसी स्थिति में कर्मपरमाणुको एक लिया जा सकता है- कर्म परमाणु अर्थात् कर्मस्कन्ध । और आगेकी गाथामें जो द्वयणुक आदिको पुद्गलकी विभावपर्याय कहा है उसे अतिसूक्ष्म भेदके अन्तर्गत लेना चाहिए । 'नियमसार में ऐसा ही कथन है ।
१. 'अइथूलथूलथूलं थूलसुहुमं च सुहुम थूलं च । सुहुमं अइसुहुमं इदि धरादियं होदि छन्भेयं ॥ २१ ॥ भूपव्वदमादीया भणिदा अइथूलथूलमिदि खंधा । थूला इदि विष्णेया सप्पीजलतेलमादीया ॥ २२॥ छायातवमादीया लेदरखंधमिदि वियाणाहि । सुहुमथूलेदि भणिया खंधा चउरक्खविसया य ॥ २३॥ सुहुमा हवंति खंधा पाओग्गा कम्मवग्गणस्स पुणो । तव्विवरीया खंधा अइसुहुमा इदि परूवेंदि ॥ २४ ॥ ' - नियमसार | 'पुढवी जलं च छाया चउरिदियविसयकम्मपरमाणू । छव्विहभेयं भणियं पोग्गलदव्वं जिणवरेहिं ॥ ६०१ ॥ 'गो० जीवकाण्ड |
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