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________________ ४२ नयचक्र टिप्पण दिये हैं। शुद्ध और सुन्दर लेख है । लेखक प्रशस्ति इति श्रीसुखबोधार्थमालापपद्धति श्रीदेवसेन पंडित विरचिता परिसमाप्ता । संवत्सरे लोकनयमुनीन्दुमिते १७६३ चैत्रमासे कृष्णपक्षे चतुर्थ्यां तिथौ इन्द्रप्रस्थनगरे नगरे चिते श्री मूलसंघे भट्टारक श्री सुरेन्द्रकीर्तिस्तत्पटोदयाद्रिदिनमणिनिभस्य स्वपंडातरीतरितागमाम्भोधेर्भट्टारकशिरोरत्नस्य भट्टारकजी श्री श्री श्री श्री १०८ श्रीमज्जगत्कीर्तितच्छिष्यविद्वन्मण्डलीमण्डितपण्डितजिश्छ्रीर्षावसीजितत्छात्रसुधी लूणकरणेनेदं लिखितं स्वपठनार्थम् । अ. प्रति आमेर, जयपुर । पत्र सं. ११ । प्रत्येक पत्र में पंक्ति ६, प्रत्येक पंक्ति में ३४ अक्षर । इसके भी प्रारम्भ के दो पत्रों पर चारों ओर हाशियों में टिप्पण भरे हैं। सं. १७६४ में वसवा नगर में पं. गोरधन ने लिखी है । ग. प्रति । जैन सिद्धान्तभवन आरा। नं. ३८ । ३ । यह ख प्रति के वंश की प्रतीत होती है। “लिखतं पूर्वदेस आरा नगर श्री पार्श्वनाथ जिनमन्दिरमध्ये काष्ठासंघे माथुरगच्छे पुष्करगणे लोहाचार्याम्नाये श्री १०८ भट्टारकोत्तम भट्टारकरजी श्री ललितकीर्ति तत्पट्टे मार्दवपरनामी श्री १०८ राजेन्द्रकीर्ति तच्छिष्य भट्टारक मुनीन्द्रकीर्ति दिल्ली सिंहासनाधीश्वर ने लिषी संवत् १६४६ का मिती भाद्रवदी ६ वार रविकू पूरा किया। विक्टूरिया अँगरेज़ वहादुर राज के विखें। शुभं भूयात् कल्याणमस्तु ।” Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001623
Book TitleNaychakko
Original Sutra AuthorMailldhaval
AuthorKailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages328
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Nyay
File Size8 MB
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