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________________ -१०३ ] नयचक्र तत्समर्थ्य जीवसंबन्धं प्राह 'खंधा बादरसुहमा णिप्पण्णं तेहिं लोयसंठाणं । कम्मं णोकम्मं विय जं बंधो हवइ जीवाणं ॥१०३॥ विशेषार्थ-सब द्रव्यों में एक पुद्गल द्रव्य ही मूर्तिक है। जिसमें रूप, रस, गन्ध और स्पर्श गुण पाये जाते हैं,उसे मूर्तिक कहते हैं। परमाणु एक प्रदेशी होता है , अतः उसमें एक रस, एक रूप, एक गन्ध और दो स्पर्श रहते हैं। किन्तु परमाणुओंके समूहसे बने स्कन्धोंमें अनेक रूप, अनेक रस, अनेक गन्ध और अनेक स्पर्श पाये जाते हैं। पुद्गल परमाणुके द्वारा ही द्रव्य, क्षेत्र, काल और भावकी माप की जाती है । अमुक स्कन्ध कितने परमाणुओंसे बना है। इसका माप परमाणुओं द्वारा ही किया जाता है। क्योंकि सबसे छोटा द्रव्य परमाणु होता है। वह परमाणु आकाश के जितने क्षेत्रको रोकता है, उसे प्रदेश कहते हैं। प्रदेश सबसे छोटा क्षेत्र है । इस तरह क्षेत्रका माप भी परमाणु द्वारा ही होता है । सबसे छोटा काल समय है । आकाशके एक प्रदेशमें स्थित पुदगल परमाणु मन्दगतिसे अपने निकटवर्ती दूसरे प्रदेशमें जितनी देर में पहुँचता है, उतने कालको समय कहते हैं। अतः समयका माप भी परमाणु द्वारा ही होता है। इसी तरह भावका माप भी परमाणु द्वारा होता है। अतः एक प्रदेशके द्वारा स्कन्धके टूटनेमें निमित्त होनेसे परमाणु स्कन्धोंका भेदन करने वाला है, एक प्रदेश द्वारा स्कन्धके संघातमें निमित्त होनेसे स्कन्धोंका कर्ता है, एक आकाश प्रदेशको लांघनेवाले अपने गति परिणामके द्वारा समय नामक काल का विभाग करता है, एक प्रदेशके द्वारा स्कन्धोंमें वर्तमान परमाणुओंकी संख्या बतलाता है। एक प्रदेशके द्वारा आकाशके क्षेत्रको मापकर प्रदेशका माप करता है । परमाणुमें होनेवाले परिणमनोंके कारण ही परमाणु अन्य परमाणुओंसे मिलकर स्कन्धकी उत्पत्ति करता है। इस तरह सब प्रकारके मापोंका मूल परमाणु है। आगे पुद्गलका जीवके साथ सम्बन्ध बतलाते हैं स्कन्ध बादर भी होते हैं और सूक्ष्म भी होते हैं। लोकका आकार उन्हींसे बना है। कर्म और नोकर्म भी पौद्गलिक स्कन्ध हैं जो जीवोंके साथ बन्धको प्राप्त होते हैं ॥१०३।। विशेषार्थ-पुद्गल परमाणुओंके संघातसे जो स्कन्ध बनते हैं वे बादर भी होते हैं और सूक्ष्म भी होते हैं। उनके छह भेद हैं-बादरबादर, बादर, बादरसूक्ष्म, सूक्ष्मवादर, सूक्ष्म और सूक्ष्मसूक्ष्म । लकड़ी, पाषाण आदि जो छेदन होनेपर स्वयं नहीं जुड़ सकते वे बादरबादर हैं। दूध, घी, तेल, जल आदि जो छेदन होनेपर स्वयं जड जाते हैं वे बादर हैं। स्थल प्रतीति होने पर भी जिनका छेदन-भेदन तथा ग्रहण अशक्य है उन छाया, धूप, अन्धकार, चाँदनी आदिको बादर सूक्ष्म कहते हैं। जो सूक्ष्म होनेपर भी स्थूल प्रतीत होते हैं उन चक्षुको छोड़कर शेष चार इन्द्रियों के विषयों स्पर्श, रस, गन्ध और शब्दको सूक्ष्मबादर कहते हैं। सूक्ष्म होने के कारण जिनका इन्द्रियोंसे ग्रहण नहीं होता, उन कर्मवर्गणाओंको सूक्ष्म कहते हैं । कर्मवर्गणासे नीचेके द्वि-अणक पर्यन्त अत्यन्त सूक्ष्म स्कन्धोंको सूक्ष्मसूक्ष्म कहते हैं। ये सब स्कन्ध परमाणुओं के संघातसे बनते हैं। परमाणमें स्निग्ध या रूक्ष गुण होता है। यह स्निग्धत्व और रूक्षत्व गुण ही स्कन्धकी उत्पत्तिमें कारण होते हैं। इन गुणों के कारण एक परमाणु अन्य परमाणुओंके साथ मिलकर स्कन्धरूप परिणमित होता है। जिन परमाणओंमें एक गण स्निग्धत्व या रूक्षत्व होता है उनका बन्ध नहीं होता, क्योंकि ऐसे परमाणु न तो दूसरे परमाणुको अपने रूप परिणमा सकते हैं और न स्वयं ही अन्य रूप परिणामत हो सकते हैं। हाँ. यदि दो गणको आदि लेकर एक परमाणसे दूसरे परमाणमें दो गण अधिक होते हैं तो उन दोनोंका बन्ध सम्भव है। और बन्धके बिना केवल संयोग मात्रसे स्कन्धकी निष्पत्ति नहीं हो सकती। जब दोनों परमाणु परिणम्य-परिणामकत्व भावसे अपनी-अपनी अवस्थाका परित्याग करके तीसरी अवस्थाको १. बादरसुहमगदाणं खंधाणं पुग्गलो त्ति ववहारो। ते होंति छप्पयारा तेलोक्कं जेहिं णिप्पण्णं ॥७६॥ -पञ्चास्ति। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001623
Book TitleNaychakko
Original Sutra AuthorMailldhaval
AuthorKailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages328
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Nyay
File Size8 MB
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