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प्रस्तावना
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परन्तु अब इन ग्रन्थोंके प्रकाशमें आनेपर यह सुस्पष्ट हो गया है कि उक्त चारों कृतियाँ ग्रन्थकार आचार्य विद्यानन्दकी नहीं हैं-पात्रकेसरीस्तोत्र आ० पात्रकेसरी अथवा पात्रस्वामीकी, जो ग्रन्थकार विद्यानन्दसे भिन्न और पूर्ववर्ती आचार्य हैं, रचना है, प्रमाणमीमांसा आ० हेमचन्द्रकी, प्रमाणनिर्णय आ० वादिराजकी और बद्धेशभवनव्याख्यान वादी विद्यानन्द ( १६वीं शती) की रचनाएँ हैं और ये तीनों विद्वान् आप्तपरीक्षाकार आ० विद्यानन्दसे उत्तरवर्ती हैं। अतः प्रामाणिक उल्लेखों आदिसे उक्त ९ निबन्ध ही ग्रन्थकारकी रचनाएँ ज्ञात होती हैं। (छ) आ० विद्यानन्दका समय ___आचार्य विद्यानन्दने अपने किसी भी ग्रन्थमें अपना समय नहीं दिया। अतः उनके समयपर प्रमाणपूर्वक विचार किया जाता है। न्यायसूत्रपर लिखे गये वात्स्यायनके' न्यायभाष्य और न्यायसूत्र तथा न्यायभाष्यपर रचे गये उद्योतकरके न्यायवात्तिक, इन तीनोंका तत्त्वार्थश्लोकवात्तिक (पृष्ठ २०५, २०६, २८३, ३०९) आदिमें नामोल्लेखपूर्वक और बिना नामोल्लेखके भी सुविस्तृत समालोचन किया है। उद्योतकरका समय ६०० ई० माना जाता है। अतः विद्यानन्द ई० सन् ६०० के पूर्ववर्ती नहीं हैं।
२. तत्त्वार्थश्लोकवात्तिक (प० १००, ४२७) और अष्टसहस्री (पृ० २८४ ) आदि ग्रन्थों में विद्यानन्दने प्रसिद्ध वैयाकरण एवं शब्दाद्वैतप्रतिष्ठाता भर्तृहरिका नाम लेकर और बिना नाम लिये उनके 'वाक्यपदीय' ग्रन्थकी अनेक कारिकाओंको उद्धृत करके खण्डन किया है। भर्तृहरिका अस्तित्वसमय ई० सन् ६०० से ई० ५५० तक सुनिर्णीत है । अतः विद्यानन्द ई० सन् ६५० के पूर्वकालीन नहीं हैं ।
३. जैमिनि, शवर, कुमारिलभट्ट और प्रभाकर इन मीमांसक विद्वानोंके
(पृ० ५ ) और पं० गजाधरलालजी द्वारा सम्पादित 'आप्त-परीक्षा' की
प्रस्तावना ( पृ० ८) आदि ग्रन्थ । १. इनका समय प्रायः ईसाकी तीसरी, चौथी शताब्दी माना जाता है। २. चीनी यात्रो इत्सिगने अपनी भारतयात्राका विवरण ई० सन् ६९१-९२ में लिखा है और उसमें उसने यह समुल्लेख किया है कि 'भर्तृहरिकी मृत्यु हुए ४० वर्ष हो गये' । अतः भर्तृहरिका समय ई० सन् ६५० तक निश्चित है। देखो, अकलंकग्र० की प्रस्तावना ।
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