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________________ ४० आप्तपरीक्षा-स्वोपज्ञटीका और सामान्य, उत्सर्ग, अन्वय, गुण ये सब पर्यायवाची हैं। तथा विशेष, भेद, पर्याय ये एकार्थक शब्द हैं। उनमें सामान्यको विषय करनेवाला नय द्रव्यार्थिक नय है और विशेषको विषय करनेवाला नय पर्यायार्थिक नय है। सामान्य और विशेष इन दोनोंका अपृथक् सिद्धरूप समुदाय द्रव्य है । इसलिये गुणविषयक भिन्न तीसरा नय नहीं है, क्योंकि नय अंशग्राही हैं और प्रमाण समुदायग्राही। अथवा, गुण और पर्याय अलग-अलग नहीं हैं-गुणोंका नाम ही पर्याय है । अतः उक्त दोष नहीं है। ___सिद्धसेन और अकलंकके इस समाधानके बाद फिर प्रश्न उपस्थित हुआ कि यदि गुण और पर्याय दोनों एक हैं-भिन्न नहीं हैं तो द्रव्यलक्षणमें उन दोनोंका निवेश किसलिये किया जाता है ? इस प्रश्नका सूक्ष्मप्रज्ञतासे भरा हुआ उत्तर देते हुए विद्यानन्द कहते हैं कि सहानेकान्तकी सिद्धिके लिये तो गुणयुक्तको द्रव्य कहा गया है और क्रमानेकान्तके ज्ञानके लिये पर्याययुक्तको द्रव्य बतलाया गया है और इसलिये गुण तथा पर्याय दोनोंका द्रव्यलक्षणमें निवेश युक्त है। विद्यानन्दके इस युक्तिपूर्ण उत्तरसे उनकी सूक्ष्मप्रज्ञता और तीक्ष्ण बुद्धिका पता चलता है। उनके स्वतंत्र और उदार विचारोंका भो हमें कितना ही परिचय मिलता है। प्रकट है कि अकलङ्कदेव और उनके अनुगामी आ० माणिक्यनन्दि तथा लघु अनन्तवीर्य आदिने प्रत्यभिज्ञानके अनेक भेद बतलाये हैं। परन्तु आ. विद्यानन्द अपने ग्रन्थोंमें प्रत्यभिज्ञानके एकत्वप्रत्यभिज्ञान और सादृश्यप्रत्यभिज्ञान ये दो ही भेद बतलाते हैं। आचार्य प्रभाचन्द्रने प्रमेयकमलमार्तण्ड (पृ० ४८२-४८७ ) और न्यायकुमुदचन्द्र (१० ७६८-७७९ ) में जो ब्राह्मणत्व जातिका विस्तृत और विशद खण्डन किया है तथा जाति-वर्णकी व्यवस्था गुणकर्मसे की है उनका प्रारम्भ जैनपरम्पराके तर्कग्नयों में आ० विद्यानन्दसे ही हुआ जान १. 'गुणवद् द्रव्यमित्युक्तं सहाकान्तसिद्धये । तया पर्यायवद् द्रव्यं क्रमानेकान्तवित्तये ॥२॥ -तत्त्वार्थश्लोक० पृ० ४३८ । २. देखो, लघीय. का. २१ । ३. परीक्षामुख ३-५ से ३-१०।। ४. देखो, प्रमेयर० ३-१०। ५. तत्त्वार्थश्लो० पृ० १९०, अष्टस. पृ० २७९, प्रमाणप० पृ० ६९ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001613
Book TitleAptapariksha
Original Sutra AuthorVidyanandacharya
AuthorDarbarilal Kothiya
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1992
Total Pages476
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Epistemology
File Size9 MB
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