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________________ प्रस्तावना क्षण, कुमारनन्दिका वादन्याय ये जैनन्यायग्रन्थ उन्हें उपलब्ध थे। इसके अलावा, आ० भूतवलि तथा पुष्पदन्तकृत षट्खण्डागम, गुणधराचार्यकृत कषायपाहड, यतिवृषभावाचार्यकृत 'तिलोयपण्णत्ति', कुन्दकुन्दाचार्यकृत प्रवचनसार, पंचास्तिकाय, नियमसार आदि आगम ग्रन्थ और पर्याप्त श्वेताम्बर ग्रन्थ उन्हें सुलभ थे। सैकड़ों ऐसे भी जैनाचार्य ग्रन्थकारोंके ग्रन्थ उन्हें प्राप्त थे, जिनका अथवा जिनके ग्रन्थोंका कोई नामोल्लेख न करके केवल उनके वाक्योंको 'उक्तं च' जैसे शब्दोंद्वारा अपने प्रायः सभी ग्रन्थोंमें उन्होंने उद्धृत किया है। उदाहरणार्थ पत्रपरीक्षामें किन्हीं पूर्वाचार्योंकी कुछ कारिकाएँ उन्होंने 'तदुक्त' करके उद्धृत की हैं। और प्रमाणपरीक्षामें 'अत्र संग्रहश्लोकाः' रूपसे सात कारिकाएँ उपस्थित की हैं जो पूर्वाचार्योकी हेतुभेदोंका प्रतिपादन करने वाली हैं। तात्पर्य यह कि जैनदार्शनिक, जैन आगमिक और जैनतार्किक साहित्य भी उन्हें विपुल मात्रामें प्राप्त था और उसका उन्होंने अपने ग्रन्थोंमें खूब उपयोग किया है तथा अपने जैनदार्शनिक ज्ञानभण्डारको समृद्ध बनाया है। (ग) सूक्ष्मप्रज्ञतादिगुण-परिचय ___ अब हम विद्यानन्दके सूक्ष्मप्रज्ञता, स्वतन्त्र विचारणा आदि दो-एक गणोंका दिग्दर्शन और कराते हैं। जैनदर्शनमें गुण और पर्याययक्तको द्रव्य कहा गया है। इसपर शङ्का की गई कि 'गुण' संज्ञा तो जैनेतरोंकी है, जैनोंकी नहीं है। जैनोंके यहाँ तो द्रव्य और पर्यायरूप ही तत्त्व वर्णित किया गया है और इसीलिये द्रव्यार्थिक तथा पर्यायाथिक इन दो ही नयोंका उपदेश दिया गया है। यदि गण भी कोई वस्तु है तो तद्विषयक तीसरा गुणार्थिक मूल नय भी होना चाहिये । परन्तु जैनदर्शनमें उसका उपदेश नहीं है ? इस शङ्काका उत्तर सिद्धसेन, अकलङ्क और विद्यानन्द इन तीनों विद्वान् ताकिकोंने दिया है। सिद्धसेन कहते हैं कि गुण पर्यायसे भिन्न नहीं है-पर्यायमें ही 'गुण' शब्दका प्रयोग जैनागममें किया गया है और इसलिये गुण और पर्याय एकार्थक होनेसे पर्यायार्थिक और द्रव्यार्थिक इन दो हो नयोंका उपदेश है, गणार्थिक नयका नहीं, अतः उक्त शङ्का युक्त नहीं है। अकलङ्कका कहना है कि द्रव्यका स्वरूप सामान्य और विशेष है। १. गुणपर्ययवद्रव्यम् ।'-तत्त्वार्थसू० ५-३७ । २. सन्मतिसूत्र ३-९, १०, ११, १२, नं० की गाथाएँ । ३. तत्त्वार्थवा० ५-३७ १० २४३ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001613
Book TitleAptapariksha
Original Sutra AuthorVidyanandacharya
AuthorDarbarilal Kothiya
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1992
Total Pages476
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Epistemology
File Size9 MB
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