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________________ प्रस्तावना पड़ता है। आ० विद्यानन्दने श्लोकवार्तिक ( पृ० ३५८ ) में सयुक्तिक बतलाया है कि गुणों और दोषोंके आधारसे ही आर्यत्व, म्लेच्छत्व आदि जातियाँ व्यवस्थित हैं, नित्य जाति कोई नहीं है। ब्राह्मणत्व, चण्डालत्व आदिको जो नित्य सर्वगत और अमर्तस्वभाव मानते हैं वह प्रमाणबाधित है। इस तरह उन्होंने अपने उदार विचारोंको भी प्रस्तुत किया है । इससे हम सहजमें जान सकते हैं कि विद्यानन्द एक उच्च तार्किक होनेके साथ स्वतन्त्र और उदार विचारक भी थे। इसके अलावा वे श्रेष्ठ और प्रामाणिक व्याख्याकार भी थे। आ० गद्धपिच्छ, स्वामो समन्तभद्र और अकलङ्गदेवके वचनों-पदवाक्यादिकोंका अपने ग्रन्थोंमें जहाँ कहीं व्याख्यान करनेका उन्हें प्रसंग आया है उनका उन्होंने बड़ी प्रामाणिकतासे व्याख्यान किया है। इसके सिवाय आ० विद्यानन्द उत्कृष्ट वैयाकरण, श्रेष्ठ कवि, अद्वितीय वादी, महान् सैद्धान्ती और सच्चे जिनशासनभक्त भी थे। उनके बाद उन जैसा महान् ताकिक और सक्ष्क्षप्रज्ञ भारतीय क्षितिजपर-कम-से-कम जैनपरम्परामें तो-कोई दृष्टिगोचर नहीं होता। वे अद्वितीय थे और उनकी कृतियाँ भी आज अद्वितीय बनी हुई हैं। (घ) विद्यानन्दपर पूर्ववर्ती जैन ग्रन्थकारोंका प्रभाव ____ आ० विद्यानन्दपर जिन पूर्ववर्ती ग्रन्थकार जैनाचार्योंका विशेष प्रभाव पड़ा है उनमें उल्लेखनीय निम्न आचार्य हैं : १ गृद्धपिच्छाचार्य ( उमास्वाति ), २ समन्तभद्रस्वामी, ३ श्रीदत्त, ४ सिद्धसेन, ५ पात्रस्वामी, ६ भट्टाकलङ्कदेव और ७ कुमारनन्दि भट्टारक। १. गृद्धपिच्छाचार्य-यह विक्रमकी पहली शतीके प्रभावशाली विद्वान् हैं। तत्त्वार्थ सूत्र इनकी अमर रचना है। इसमें जैन तत्त्वों ( जीव, अजीव, आस्रव, बन्ध, संवर, निर्जरा और मोक्ष इन सात ) का और उनके अधिगमोपाय, प्रमाण, नय तथा प्रमाणके प्रत्यक्ष-परोक्षरूप दो भेदों और नयोंके नैगम, संग्रह, व्यवहार, ऋजुसूत्र, शब्द, समभिरूढ और एवंभूत इन सात भेदोंका से द्धान्तिक और दार्शनिक प्रतिपादन किया गया है। विभिन्न स्थलोंमें 'धर्मास्तिकायाभावात्', 'तन्निसर्गादधिगमाद्वा' जैसे १. देखो, तत्त्वार्थश्लो० पृ० २४०, २४२, २५४ आदि । २. देखो, मुख्तारसा०का स्वामी समन्तभद्र' । पं० सुखलालजी इन्हें भाष्यको स्वोपज्ञ माननेके कारण विक्रमकी तीसरीसे पांचवीं शतीका अनुमानित करते हैं (ज्ञानबिन्दुकी प्रस्तावना) । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001613
Book TitleAptapariksha
Original Sutra AuthorVidyanandacharya
AuthorDarbarilal Kothiya
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1992
Total Pages476
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Epistemology
File Size9 MB
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