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________________ कारिका ११६ ] अर्हन्मोक्षमार्गनेतृत्व-सिद्धि ३३५ तद्घातिकर्मोदये सति संसारिणस्तदसम्भवात् । तत्क्षये तु केवलिनः सर्वद्रव्यपर्यायविषयस्य ज्ञानस्य प्रमाणतः प्रसिद्धेः सर्वज्ञत्वस्य साधनात् । चैतन्यमात्रमेवात्मनः स्वरूपं [ न ज्ञानम् ] इत्यप्यनेन निरस्तम्, ज्ञानस्वभावरहितस्य चेतनत्वविरोधात्, गगनादिवत् । $ ३०५. "प्रभास्वरमिदं चित्तम्" [ ] इति स्वसंवेदनमात्रं चित्तस्य स्वरूपं वदन्नपि सकलार्थविषयज्ञानसाधना निरस्तः, स्वसंविन्मात्रेण वेदनेन सर्वार्थसाक्षात्करणविरोधात् । ६३०६. तदेवं प्रतिवादिपरिकल्पिताआत्मस्वरूपस्य प्रमाणबाधितभी दूर हो जाता है क्योंकि समस्त पदार्थों के ज्ञानको घातनेवाले घातिकर्मोंके उदयमें संसारियोंके वह सम्भव नहीं है। उनके नाश हो जानेपर तो केवलीभगवान्के वह समस्त द्रव्यों और उनकी समस्त पर्यायोंको विषय करनेवाला ज्ञान प्रमाणसे प्रसिद्ध है और इसलिये सर्वज्ञताकी उनके सिद्धि की जाती है । तात्पर्य यह कि आत्मामें जब तक घातिकर्मोंका उदय विद्यमान रहता है तब तक समस्त पदार्थोंका ज्ञान संसारी जीवोंको नहीं होता, किन्तु जिस आत्मविशेषके घातिकर्मोंका अभाव हो जाता है उसके समस्त पदार्थविषयक ज्ञान होता है क्योंकि विशिष्ट आत्माको सर्वज्ञ माना गया है। अतः ज्ञानको आत्माका स्वरूप मानने में न सर्वार्थविषयक ज्ञानका प्रसंग आता है और न अज्ञानके अभावका प्रसंग आदि दोष प्राप्त होता है। ___जो कहते हैं कि 'चैतन्यमात्र ही आत्माका स्वरूप है, ज्ञान नहीं' [ ] उनका यह कहना भी उपयुक्त विवेचनसे निराकृत हो जाता है, क्योंकि जो ज्ञानस्वभावसे रहित है वह चेतन नहीं हो सकता है, जैसे आकाशादिक । $ ३०५. "प्रकाशस्वरूप यह चित्त ( आत्मा ) है", [ अतः स्वसंवेदनमात्र चित्तका स्वरूप है, बौद्धोंका यह कथन भी ज्ञानको सकलार्थविषयक सिद्ध करनेसे खण्डित हो जाता है क्योंकि जो ज्ञान अपने आपका ही वेदक (प्रकाशक ) है वह समस्त पदार्थों का साक्षात्कर्ता नहीं हो सकता है। $ ३०६. इस प्रकार प्रतिवादियोंद्वारा कल्पित किया गया आत्माका 1. मु स प 'इत्यनेन । 2. 'साधनो नि। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001613
Book TitleAptapariksha
Original Sutra AuthorVidyanandacharya
AuthorDarbarilal Kothiya
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1992
Total Pages476
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Epistemology
File Size9 MB
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