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________________ ३३६ आप्तपरीक्षा-स्वोपज्ञटीका [कारिका ११६ त्वात्स्याद्वादिनिगदितमेवानन्तज्ञानादिस्वरूपमात्मनो व्यवतिष्ठते । ततस्तस्यैव लाभो मोक्षः सिद्ध्येन्न पुनः स्वात्मप्रहाणमिति प्रतिपद्य महि प्रमाणसिद्धत्वात् । $३०७. तथा कर्मस्वरूपे च विप्रतिपत्तिः कर्मवादिनां कल्पनाभेदात् । सा च पूर्वं निरस्ता, इत्यलं विवादेन । [संवरनिर्जरामोक्षाणां भेदप्रदर्शनम् ] ३०८. ननु च संवरनिर्जरामोक्षाणां भेदाभावः, कर्माभावस्वरूपत्वाविशेषात्, इति चेत्, न; संवरस्यागामिकर्मानुत्पत्तिलक्षणत्वात् । "आस्रवनिरोधः संवरः" [ तत्त्वार्थसू० ९।१] इति वचनात् । निर्जरायास्तु देश सञ्चितकर्मविप्रमोक्षलक्षणत्वात्, “देशतः कर्मविप्रमोक्षो निर्जरा" [ ] इति प्रतिपादनात् । कृत्स्नकर्मविप्रमोक्षस्यैव मोक्षत्ववचनात् । ततः सञ्चितानागतद्रव्यभावकर्मणां विप्रमोक्षस्य संवरनिर्जरयोरभावात्ताभ्यां मोक्षस्य भेवः सिद्धः । स्वरूप प्रमाणबाधित हानेसे स्याद्वादियोंद्वारा कहा गया आत्माका अनन्तज्ञानादि स्वरूप व्यवस्थित होता है । अतः उसी अनन्तज्ञानादि स्वरूपका लाभ (प्राप्ति ) मोक्ष सिद्ध होता है, आत्माका नाश मोक्ष नहीं, यही हम ठीक समझते हैं क्योंकि वह प्रमाण सिद्ध है। ३०७. इसी तरह कर्मको माननेवालोंके कर्मस्वरूपमें विवाद है, क्योंकि उसमें उनकी नाना कल्पनाएँ हैं जिनका पहले निराकरण किया जा चुका है। अतः इस विवादको अब समाप्त करते हैं। $३०८. शङ्का-संवर, निर्जरा और मोक्ष इनमें भेद नहीं है क्योंकि तीनों ही कर्मोके अभावस्वरूप हैं ? समाधान-नहीं, क्योंकि आगामी कर्मोंका उत्पन्न न होना संवर. है। कारण, "आस्रवका रुक जाना संवर है" [ तत्त्वार्थसू०९-१] ऐसा सूत्रकारका उपदेश है । और सञ्चित कर्मोंका एक-देश क्षय होना निर्जरा है। कारण, "एक-देशसे कर्मोका नाश होना निर्जरा है" [ ] ऐसा कहा गया है । तथा समस्त कर्मोका सर्वथा क्षीण हो जाना मोक्ष है। अतः संवर तो आगामी द्रव्य और भावकोंके अभावरूप है और निर्जरा संचित द्रव्य और भावकों के एक-देश अभावरूप है । तथा मोक्ष आगामी और संचित समस्त द्रव्य-भाव कर्मोंके सम्पूर्णतः अभावरूप है जो न संवर 1. मु स प 'देश' पाठो नास्ति । 2. द 'भेदसिद्धिः '। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001613
Book TitleAptapariksha
Original Sutra AuthorVidyanandacharya
AuthorDarbarilal Kothiya
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1992
Total Pages476
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Epistemology
File Size9 MB
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