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________________ ३१० आप्तपरीक्षा-स्वोपज्ञटीका [कारिका ११० पौरुषेयो वा ? न तावदपौरुषेयः, तस्य कार्यादर्थादन्यत्र परैः प्रामाण्या. निष्टेरन्यथाऽनिष्टसिद्धिप्रसङ्गात् । नापि पौरुषेयः, तस्यासर्वज्ञप्रणीतस्य' प्रामाण्यानुपपत्तेः। सर्वज्ञप्रणीतस्य तु परेषामसिद्धेरन्यथा सर्वज्ञसिद्धेस्त. दभावायोगादिति न प्रभाकरमतानुसारिणां प्रत्यक्षादिप्रमाणानामन्यतममपि प्रमाणं सर्वज्ञाभावसाधनायालम, यतः सर्वज्ञस्य बाधकमभिधीयते। [अभावप्रमाणस्यानुपपत्यैव सर्वज्ञाबाधकत्वमिति प्रतिपादयति ] २८४. भट्रमतानुसारिणामपि सर्वज्ञस्या भावसाधनमभावप्रमाणं नोपपद्यत एव। तद्धि सदुपलम्भक प्रमाणपञ्चकनिवृत्तिरूपम, सा च सर्वज्ञविषयसदुपलम्भकप्रमाणपञ्चकनिवत्तिरात्मनोऽपरिणामो वार विज्ञानं वाऽन्यवस्तुनि स्यात् ? गत्यन्तराभावात् । न तावत्सर्वज्ञविषय. प्रत्यक्षादिप्रमाणरूपेणात्मनोऽपरिणामः सर्वज्ञस्याभावसाधकः, सत्यपि २८३. यदि कहा जाय कि आगम सर्वज्ञका बाधक है तो बतलाइये, वह आगम अपौरुषेय है या पौरुषेय ? अपौरुषेय आगम तो सर्वज्ञका बाधक हो नहीं सकता, क्योंकि आप मीमांसकोंने उसे यज्ञादिकार्यरूप अर्थके अतिरिक्त दूसरे विषय में प्रमाण नहीं माना है। अन्यथा अनिष्टसिद्धिका प्रसंग आवेगा। पौरुषेय आगम भी सर्वज्ञका बाधक नहीं है, क्योंकि असर्वज्ञपुरुषरचित आगम तो प्रमाण नहीं है-अप्रमाण है। और सर्वज्ञपुरुषरचित आगम मीमांसकोंके असिद्ध है। अन्यथा सर्वज्ञपुरुषकी सिद्धि हो जानेसे उसका अभाव नहीं किया जा सकता है। इस प्रकार प्राभाकरोंके प्रत्यक्षादि पाँच प्रमाणोंमेंसे एक भी प्रमाण सर्वज्ञका अभाव सिद्ध करनेमें समर्थ नहीं है। भाटोंका भी सर्वज्ञके अभावका साधक अभावप्रमाण नहीं बनता है। प्रकट है कि वह अस्तित्वके साधक पाँच प्रमाणोंकी निवृत्तिरूप है । सो वह सर्वज्ञको विषय करनेवाले अस्तित्वसाधक पाँच प्रमाणोंकी निवृत्ति आत्माका अपरिणाम है अथवा अन्य वस्तु में ज्ञान ? अन्य विकल्पका अभाव है। सर्वज्ञविषयक प्रत्यक्षादि प्रमाण रूपसे आत्माका अपरिणाम तो 1. मु स 'स्यासर्वज्ञपुरुषप्रणीतस्य' । 2. मु स प 'ततस्तदभावा' । 3. मु स 'सर्वज्ञाभाव' । 4. मु 'सदुपलम्भप्रमा' । 5. द 'प्रत्यक्षादिप्रमाण निवृत्तिरूपेणात्मनः परिणामः' । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001613
Book TitleAptapariksha
Original Sutra AuthorVidyanandacharya
AuthorDarbarilal Kothiya
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1992
Total Pages476
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Epistemology
File Size9 MB
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