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________________ ܪ प्रस्तावना जिनका समय १६ वीं शती है— ग्रन्थकार विद्यानन्दका उन शिलालेखगत शास्त्रार्थों और विजयोंसे कोई सम्बन्ध नहीं है और इसलिये जो विद्वान् उक्त शिलालेखको ग्रन्थकार विद्यानन्दके परिचय में प्रस्तुत करके दोनों विद्यानन्दोंको अभिन्न समझते थे, वह भी एक भ्रम था और वह भी मुख्तारसा० के उक्त लेख तथा इस स्पष्टीकरणद्वारा दूर हो जाता है । और इस तरहपर अब सभी विद्वान्' एक मत हैं कि स्वामी पात्रकेसरी और विद्यानन्द जुदे- जुदे दो आचार्य हैं और दोनों भिन्न-भिन्न समय में हुए. हैं । तथा वादी विद्यानन्द भी उनसे पृथक् हैं और विभिन्नकालीन हैं । (ग) ग्रन्थकारको जीवनी कुमारजीवन और जैनधर्मग्रहण आ० विद्यानन्दके ब्राह्मणोचित प्रखर पाण्डित्य और महती विद्वत्तासे प्रतीत होता है कि वे ब्राह्मण और जैन विद्वानोंकी प्रसवभूमि दक्षिण के किसी प्रदेश ( मैसूर अथवा उसके आस-पास ) में ब्राह्मणकुल में पैदा हुए. होंगे और इसलिये यह अनुमान किया जा सकता है कि वे बाल्यकालमें प्रतिभाशाली होनहार विद्यार्थी थे। उनके साहित्यसे ज्ञात है कि उनकी वाणीमें माधुर्य और ओजका मिश्रण था, व्यक्तित्वमें निर्भयता और तेजका समावेश था, दृष्टिमें नम्रता और आकर्षण था । धार्मिक जनसेवा और विनय उनके सहचर थे । ज्ञान-पिपासा और जिज्ञासा तो उन्हें. सतत बनी रहती थी, जो भी विशिष्ट विद्वान्, चाहे बौद्ध हो, चाहे जैन, अथवा ब्राह्मण, मिलता उसीसे कुछ-न-कुछ ज्ञान प्राप्त करनेकी उनकी २७ १. बा. कामताप्रमादजीका जैनसि भा. वर्ष ३, किरण ३, गत लेख । तथा सिद्धान्तशास्त्री पं० कैलाशचन्द्रजी की न्यायकुमुदचन्द्र प्रथमभावगत प्रस्तावना, पृ० ७५१ । २. मुझे अपने हालके ताजे स्वप्नसे लगता है कि आ० विद्यानन्द 'तौलव' देशके रहने वाले थे । ३. विद्यानन्दके अष्टसहस्री, तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक आदि ग्रन्थोंको देखिये उन सबमें उनकी वाणी में, व्यक्तित्वमें और शैली में ये सभी गुण देखने को मिलते हैं । उनके श्लोकवार्तिक ( पृ० ४५३ ) गत निम्न स्वोपज्ञ पद्य में भी इन गुणोंका कुछ आभास मिलता है अर्हत्पूजापरता वैयावृत्योद्यमो विनीतत्वम् । आर्जव - मार्दव- धार्मिक जनसेवा - मित्रभावाद्याः ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001613
Book TitleAptapariksha
Original Sutra AuthorVidyanandacharya
AuthorDarbarilal Kothiya
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1992
Total Pages476
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Epistemology
File Size9 MB
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