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________________ आप्तपरीक्षा-स्वोपज्ञटीका विद्यानन्द एक हों । जो हो । तीसरे विद्यानन्द प्रस्तुत ग्रन्थके कर्ता प्रसिद्ध और पुरातनाचार्य तार्किकशिरोमणि विद्यानन्दस्वामी हैं जो तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक आदि सुप्रसिद्ध दार्शनिक ग्रन्थोंके निर्माता हैं और जिनके सम्बन्धमें ही यहाँ विचार प्रस्तुत है। (ख) विद्यानन्द और पात्रकेसरी (पात्रस्वामी)की एकताका भ्रम आजसे कोई सोलह-सतरह वर्ष पहले तक यह समझा जाता था कि आ० विद्यानन्दस्वामी और पात्रकेसरो अथवा पात्रस्वामी एक हैं-एक ही विद्वान्के ये दो नाम हैं परन्तु यह एक भारी भ्रम था। इस भ्रमको श्रीयुत पं० जुगलकिशोरजी मुख्तारने अपने 'स्वामी पात्रकेसरी और विद्यानन्द' शीर्षक एक खोजपूर्ण लेखद्वारा दूर किया है। इस लेखमें आपने अनेक प्रबल और दृढ प्रमाणोंद्वारा सिद्ध किया है कि 'स्वामी पात्रकेसरो और विद्यानन्द दो भिन्न आचार्य हुए हैं-दोनोंका व्यक्तित्व भिन्न है, ग्रन्थसमूह भिन्न है और समय भी भिन्न है।" स्वामी पात्रकेसरी अकलङ्कदेव ( वि० की ७ वी ८ वीं शती ) से बहुत पहले हो चुके हैं और विद्यानन्द उनके बाद हुए हैं। और इसलिये इन दोनों आचार्योंके समयमें शताब्दियोंका-कम-से-कम दो-सौ वर्षका-अन्तर है । मुख्तारसाने 'सम्यक्त्वप्रकाश' आदि अर्वाचीन ग्रन्थोंके भ्रामक उल्लेखोंका, जो उक्त दोनों आचार्योंकी अभिन्नताको सूचित करते थे और जिनपरसे दोनों विद्वानाचार्योंकी अभिन्नताकी भ्रान्ति फैल गई थी, सयुक्तिक निरसन किया है और उनकी भूलें दिखलाई हैं । हम ऊपर कह आये हैं कि हुम्बुच्चके शिलालेख नं०४६ ( ई० १५३० )में जिन विद्यानन्दके शास्त्रार्थों और विजयोंका उल्लेख किया गया है वे प्रथम नं० के वादि विद्यानन्द हैं, १. मुख्तारसाहबके पुस्तकभण्डारमें 'दशभक्त्यादिमहाशास्त्र' की एक प्रति मौजूद है जो हमें उनसे देखनेको प्राप्त हुई है। यह प्रति आराकी प्रतिपरसे तैयार की गई है। इस ग्रन्थमें बहुत ही घुटाला, पुनरुक्तियाँ और स्खलन हैं। इसमें उल्लिखित विद्वानोंका क्रमबद्ध निर्णय करनेके लिये बड़े परिश्रम और समयकी अपेक्षा है। समयाभावसे हमने विशेष विचारको अप्रस्तुत समझ कर छोड़ दिया है । सम्पादक । २. देखिए, श्री० पं. नाथूरामजी प्रेमीद्वारा लिखित 'स्थाद्वादविद्यापति विद्या नन्दि' नामक लेख, जनहितैषी वर्ष ९, अंक ९ । ३. देखो, अनेकान्त वर्ष १, किरण २ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001613
Book TitleAptapariksha
Original Sutra AuthorVidyanandacharya
AuthorDarbarilal Kothiya
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1992
Total Pages476
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Epistemology
File Size9 MB
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