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________________ २८५: कारिका ९६ ] अर्हत्सर्वज्ञ-सिद्धि विषयमित्यनुमानेन धर्माद्यर्थविषयस्य प्रत्यक्षस्य निराकरणात् । न चेदमस्मदादिप्रत्यक्षागोचरविप्रकृष्टार्थनाहिगृद्ध--वराह-पिपीलिकादिचक्षुःश्रोत्रघ्राणप्रत्यक्षयभिचारि साधनम्, तेषामपि धर्मादिसूक्ष्माद्यर्थाविषयत्वात, अस्मदादिप्रत्यक्षविषयसजातीयार्थग्रहणानतिक्रमास्वविषयस्यैवे. न्द्रियेण ग्रहणादिन्द्रियान्तरविषयस्यापरिच्छित्तेः। [ सर्वज्ञाभाववादिनो भट्टस्य पूर्वपक्षप्रदर्शनम् ] $ २६२. ननु च प्रज्ञा-मेधा-स्मृति-श्रुत्यूहापोह-प्रबोध'शक्तीनां प्रतिपुरुषमतिशयदर्शनात्कस्यचित्सातिशयं प्रत्यक्ष सिद्ध्यत्परा काष्ठामापद्यमान धर्मादिसूक्ष्माद्यर्थसाक्षात्कारि सम्भाव्यत एव, इत्यपि न मन्तव्यम्, प्रज्ञामेधादिभिः पुरुषाणां स्तोकस्तोकान्तरत्वेन सातिशयत्वदर्शनास्कस्यचिदतीन्द्रियार्थदर्शनानुपलब्धः। तदुक्तं भट्टन "येऽपि सातिशया दृष्टाः प्रज्ञामेधादिनिर्भराः। स्तोकस्तोकान्तरत्वेन न त्वतोन्द्रियदर्शनात् ॥" [तत्वसं० द्वि० भा० ३१६० उ० ] इति । यहाँ यह नहीं कहा जा सकता कि हम लोगों आदिके प्रत्यक्षके अविषयभूत पदार्थों को ग्रहग करनेवाले गृद्ध , सुअर, चिवटी आदिके चक्षु, श्रोत्र और नासिका प्रत्यक्षोंके साथ हेतु व्यभिचारो है, क्योंकि वे भी धर्मादि अतीन्द्रिय पदार्थोंको विषय नहीं करते हैं और इसलिये व हम लोगों आदिके प्रत्यक्षके विषयभूत पदार्थों के सदृश हो पदार्थों को ग्रहण करनेसे अपने विषयको ही इन्द्रियद्वारा ग्रहण करते हैं, अन्य इन्द्रियविषयको वे नहीं जानते हैं। 5 २६२. यदि माना जाय कि 'बुद्धि, प्रतिभा, स्मरण, श्रुति, तर्क और प्रबोध ( समझने की योग्यता) इन शक्तियोंका प्रत्येक पुरुषमें अतिशय ( न्यूनाधिकपना ) देखा जाता है । अतः किसोका प्रत्यक्ष विशिष्ट अतिशयवान् सिद्ध होता है और वह परमप्रकर्षको प्राप्त होता हुआ धर्मादिक सूक्ष्मादि अतीन्द्रिय पदार्थों का साक्षात्कार करनेवाला सम्भव है, तो यह मान्यता भी ठीक नहीं है, क्योंकि बुद्धि, प्रतिभा आदिसे पुरुषोंके जो विशिष्ट अतिशय देखा जाता है वह न्यूनाधिकतारूपसे ही देखा जाता है और इसलिये किसीके अतीन्द्रिय पदार्थों का प्रत्यक्षज्ञान उपलब्ध नहीं होता । जैसा कि कुमारिलभट्टने कहा है:"बुद्धि, प्रतिभा आदिसे जो भी पुरुष अतिशयवान् देखे गये हैं वे 1. व 'प्रतिबोध'। 2. द 'क्वचित्' । 3. व 'यदुक्तम्'। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001613
Book TitleAptapariksha
Original Sutra AuthorVidyanandacharya
AuthorDarbarilal Kothiya
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1992
Total Pages476
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Epistemology
File Size9 MB
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