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आप्तपरीक्षा-स्वोपज्ञटीका [कारिका ९६ $ २६१. ननु च सूक्ष्मान्तरितदूरार्थानां विश्वतत्त्वाना साक्षात्कर्ताऽहन्न सिद्धयत्येवास्मादतुमानात, पक्षस्य प्रमाणबाधितत्वाद्धेतोश्च बाधितविषयत्वात । तथा हि-देशकालस्वभावान्तरितार्था धर्माधर्मादयोऽहंतः प्रत्यक्षा इति पक्षः, स चानुमानेन बाधते-धर्मादयो न कस्यचित्प्रत्यक्षाः शश्वदत्यन्तपरोक्षत्वात्, ये तु कस्यचित्प्रत्यक्षास्ते नात्यन्तपरोक्षा:, यथा घटादयोऽर्थाः अत्यन्तपरोक्षाश्च धर्मादयः, तस्मान्न कस्यचित्प्रत्यक्षा इति । न तावदत्यन्तपरोक्षत्वं धर्मादीनामसिद्धम, कदाचित्क्वचित्कथञ्चित्कस्यचित्प्रत्यक्षत्वासिद्धेः, सर्वस्य प्रत्यक्षस्य तद्विषयत्वाभावात् । तथा हि-विवादाध्यासितं प्रत्यक्षं न धर्माद्यर्थविषयम, प्रत्यक्षशब्दवाच्यत्वात् । यदित्थं तदित्थम्, यथाऽस्मदादिप्रत्यक्षम् । प्रत्यक्षशब्दवाच्यं च विवादाध्यासितं प्रत्यक्षम् । तस्मान्न धर्माद्यर्थ
$ २६१. शङ्का-सूक्ष्म, अन्तरित और दूरवर्ती पदार्थों का साक्षात्कर्ता अरहन्त इस अनुमानसे सिद्ध नहीं होता; क्योंकि पक्ष प्रमाणबाधित है और हेतु बाधितविषय ( कालात्ययापदिष्ट ) हेत्वाभास है । वह इस तरह है'देश, काल और स्वभावसे अन्तरित धर्म-अधर्म आदिक पदार्थ अर्हन्तके प्रत्यक्ष हैं' यह पक्ष है। सो वह अनुमानसे बाधित है। वह अनुमान यह है-'धर्मादिक पदार्थ किसीके प्रत्यक्ष नहीं हैं, क्योंकि सदैव अत्यन्त परोक्ष हैं। जो किसीके प्रत्यक्ष हैं वे सदैव अत्यन्त परोक्ष नहीं हैं, जैसे घटादिक पदार्थ, और अत्यन्त परोक्ष धर्मादिक पदार्थ हैं, इस कारण वे किसीके प्रत्यक्ष नहीं हैं।' इस अनुमानमें धर्मादिकोंके अत्यन्त परोक्षपना असिद्ध नहीं है। क्योंकि वे कभी, कहीं, किसी प्रकार, किसीके प्रत्यक्ष सिद्ध नहीं हैं और इसलिये समस्त प्रत्यक्ष उनको विषय नहीं करते हैं। हम सिद्ध करते हैं कि 'विचारकोटिमें स्थित प्रत्यक्ष धर्मादिक पदार्थोंको विषय नहीं करता है क्योंकि वह 'प्रत्यक्ष' शब्दद्वारा कहा जाता है। जो प्रत्यक्षशब्द द्वारा कहा जाता है वह धर्मादि पदार्थोको विषय नहीं करता, जैसे हम लोगों आदिका प्रत्यक्ष, और प्रत्यक्षशब्दद्वारा कहा जाता है विचारस्थ प्रत्यक्ष ( अर्हन्तप्रत्यक्ष ), इस कारण वह धर्मादिक पदार्थोंको विषय नहीं करता।' इस अनुमानसे धर्मादि पदार्थों को विषय करनेवाले प्रत्यक्षका अभाव सिद्ध होता है।
1. द स 'धर्मादयो' पाठः । 2. व प्रतौ 'तु' नास्ति। 3. मु 'तत्प्रत्यक्षं ।
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