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________________ क रका ८४] सुगत-परीक्षा २३१ कारमात्मन्यविद्यमानमारोपयतीति सांवृत्तालम्बनाः पञ्च विज्ञानकाया इति निगद्यते, तदा निरंशानां क्षणिकपरमाणूनां का नामाऽत्यासन्नता ? इति विचार्यम् । व्यवधानाभाव इति चेत्, तहि सजातीयस्यविजातीयस्य च व्यवधायकस्याभावात्तेषां व्यवधानाभावः संसर्ग एवोक्तः स्यात् । स च सर्वात्मना न सम्भवत्येवैकपरमाणुमात्रप्रचयप्रसङ्गात् । नाऽप्येकदेशेन दिग्भागभेदेन षड्भिः परमाणुभिरेकस्य परमाणोः संसृज्यमानस्य षडंशतापत्ते। तत एवासंसृष्टाः परमाणवः प्रत्यक्षेणालम्ब्यन्त इति चेत्, कथमत्यासन्नास्ते विरोधात्, दविष्टदेशव्यवधानाभवादत्यासन्तास्ते इति सामान्य आकारको, जो वास्तवमें अविद्यमान है-उसमें नहीं है, अपने में आरोपित करती है और इसीसे 'पाँच विज्ञानकाय सांवृतालम्बी-काल्पनिक कहे जाते हैं ? ___ जैन-यदि ऐसा है तो यह विचारिये कि निरन्तर क्षणिक परमाणुओंकी अत्यन्त निकटवर्तिता क्या है ? सौत्रा०-परमाणुओंके मध्य में व्यवधान न होना, यह उनकी अत्यन्त निकटवर्तिता है। जैन-तो आपने सजातीय और विजातीय व्यवधायकके न होनेसे उनके व्यवधानाभावको संसर्ग ही बतलाया जान पड़ता है। सो वह संसर्ग सम्पूर्णपनेसे सम्भव नहीं है, क्योंकि एकपरमाणुमात्रके प्रचयका प्रसंग आता है अर्थात् एकपरमाणुसे दूसरे परमाणुओंका सर्वात्मना संसर्ग माननेपर केवल एकपरमाणुका ही प्रचय होगा, क्योंकि दूसरे सब परमाणु उसी एक परमाणुके पेट में समा जायेंगे। एकदेशसे भी वह संसर्ग सम्भव नहीं है, क्योंकि छह दिशाओंसे छह परमाणुओद्वारा एकपरमाणुके साथ सम्बन्ध होनेपर उस परमाणके षडंशताकी प्राप्ति होती है अर्थात् छह (पूर्व, पश्चिम, उत्तर, दक्षिग, ऊपर और नीचेकी) ओरसे छह परमाणु आकर जब एक परमाणुसे एक देशसे सम्बन्ध करेंगे तो उस एक परमाणुके छह अंश प्रसक्त होंगे और इस तरह वह निरंश नहीं बन सकेगा। सौत्रा०-इसीसे परमाणु असम्बद्ध-सम्बन्धरहित प्रत्यक्षसे उपलब्ध होते हैं ? जैन-फिर उन्हें आप अत्यन्त निकटवर्ती कैसे कहते हैं ? क्योंकि परस्पर विरोध है-जो असम्बद्ध हैं वे अत्यन्त निकटवर्ती कैसे ? और जो अत्यन्त निकटवर्ती हैं वे असम्बद्ध कैसे ? 1. म स प संसृष्ट' । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001613
Book TitleAptapariksha
Original Sutra AuthorVidyanandacharya
AuthorDarbarilal Kothiya
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1992
Total Pages476
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Epistemology
File Size9 MB
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