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________________ कारिका ८१-८३ ] कपिल-परीक्षा २११ इत्यसम्भाव्यमेवास्याऽचेतनत्वात्पटादिवत् । सदसम्भवतो नूनमन्यथा निष्फलः पुमान् ॥८१॥ भोक्ताऽऽत्मा चेत्स एवाऽस्तु कर्ता तदविरोधतः । विरोधे तु तयोर्भोक्तुः स्याद्भुजौ कर्तृता कथम् ॥८२॥ प्रधानं मोक्षमार्गस्य प्रणेतृ, स्तूयते पुमान् । मुमुक्षुभिरिति, ब्रूयात्कोऽन्योऽकिञ्चित्करात्मनः ॥८३॥ ६ १९२. प्रधानमेवास्तु मोक्षमार्गस्योपदेशकं ज्ञत्वात्, यस्तु न मोक्षमार्गस्योपदेशकः स न जो दृष्टः, यथा घटादि,, मुक्तात्मा च, ज्ञं च प्रधानम्, तस्मान्मोक्षमार्गस्योपदेशकम् । न च कपिलादिपुरुषसंसर्गभाजः प्रधानस्य ज्ञत्वमसिद्धं विश्ववेदित्वात् । यस्तु न ज्ञः स न विश्ववेदी, यथा घटादिः, विश्ववेदि च प्रधानम, ततो ज्ञमेव च। विश्ववेदि च तत्सिद्धं पर्वतोंका भेदक है। किन्तु सांख्योंका यह मत असम्भव है, कारण वह (प्रधान ) वस्त्रादिककी तरह अचेतन है, इसलिये उसके कर्मपर्वतोंका भेत्तापन, विश्ववेदिता और ज्ञातृता एवं मोक्षमार्गका उपदेशकपना ये सब असम्भव हैं । अन्यथा निश्चय ही पुरुष निरर्थक हो जायगा। अगर कहें कि पुरुष भोक्ता है, इसलिये वह निरर्थक नहीं है तो वही कर्ता हो, क्योंकि कर्तृत्व और भोक्तृत्व में विरोध नहीं है-दोनों एक-जगह बन सकते हैं। और यदि उनमें विरोध कहा जाय तो भोक्ताके भुजिक्रिया सम्बन्धी कर्तृता कैसे बन सकेगी, अर्थात् भोक्ता भुजिक्रियाका कर्ता कैसे हो सकेगा? सबसे अधिक आश्चर्यको बात तो यह है कि प्रधान मोक्षमार्गका उपदेशक है और स्तुति मुमुक्षु पुरुषकी करते हैं ! इस प्रकारका कथन आत्माको अकिञ्चित्कर मानने या कहनेवाले (सांख्यों) के सिवाय दूसरा कौन कर सकता है ? अर्थात् सांख्योंके सिवाय ऐसा कथन कोई भी नहीं करता है।' $ १९२. सांख्य-प्रधानको ही हम मोक्षमार्गका उपदेशक मानते हैं, क्योंकि वह ज्ञ है। जो मोक्षमार्गका उपदेशक नहीं है वह ज्ञ नहीं देखा जाता, जैसे घटादिक अथवा मुक्तात्मा। और ज्ञ प्रधान है, इस कारण वह मोक्षमार्गका उपदेशक है। तथा कपलादिकपुरुषसंसर्गी प्रधानके यह ज्ञपना असिद्ध नहीं है, क्योंकि वह विश्ववेदी-सर्वज्ञ है। जो ज्ञ नहीं है 3. द 'वा'। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001613
Book TitleAptapariksha
Original Sutra AuthorVidyanandacharya
AuthorDarbarilal Kothiya
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1992
Total Pages476
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Epistemology
File Size9 MB
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