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________________ २१० आप्तपरीक्षा-स्वोपज्ञटोका [कारिका ८० स्वरूपढयं च ततो नैकमनेकरूपं प्रधानं सिद्ध्येत्, यतः सर्व वस्त्वेकानेकरूपं साधयेदिति; तदपि न विचारसहम्, मुक्तामुक्तत्वयोरपि पुंसामपारमार्थिकत्वप्रसङ्गात् । [प्रधानस्य मुक्तत्वामुक्तत्वे न पुरुषस्येति कल्पनायामपि दोषमाह । १९१. सत्यमेतत्, न तत्त्वतः पुरुषस्य मुक्तत्वं संसारित्वं वा धर्मोऽस्ति प्रधानस्यैव संसारित्वप्रसिद्धः। तस्यैव च मुक्तिकारणतत्त्व. ज्ञानवैराग्यपरिणामान्मुक्तत्वोपपत्तेः । तदेव च मुक्तेः पूर्वं निःश्रेयसमार्गस्योपदेशकं प्रधानमिति परमतमनूद्य दूषयन्नाह प्रधानं ज्ञत्वतो मोक्षमार्गस्याऽस्तूपदेशकम् । तस्यैव विश्ववेदित्वाद्धेतृत्वात्कर्मभूभृताम् ॥८०॥ अनष्टत्व धर्म तथा अवसिताधिकारत्व धर्म और अनवसिताधिकारत्व धर्म आरोपित ( अपारमार्थिक ) हो होना चाहिये और उनकी अपेक्षाके निमित्तभत दोनों स्वरूप भी आरोपित स्वीकार करना चाहिये। अतः प्रधान एक और अनेक सिद्ध नहीं होता, जिससे वह समस्त वस्तुओंको एक और अनेक रूप अर्थात् अनेकान्तात्मक सिद्ध करे ? - जैन-आपका यह अभिप्राय भी विचारयोग्य नहीं है, क्योंकि इस तरह मुक्तपना और अमुक्तपना ये दोनों धर्म भी पुरुषोंके अवास्तविक हो जायेंगे। तात्पर्य यह कि यदि प्रधान वास्तव में दो विरोधी धर्मोंका अधिकरण नहीं है केवल कल्पनासे वे उसमें अध्यारोपित हैं तो पुरुषोंके मुक्तपना और अमुक्तपना ये दो विरोधी धर्म भी वास्तविक नहीं ठहरेंगे--अवास्तविक मानना पड़ेंगे।। $ १९१. सांख्य-वेशक, आपका कहना ठीक है, यथार्थतः मुक्तपना और अमुक्तपना पुरुषका धर्म नहीं है। प्रधानके ही अमुक्तपना प्रसिद्ध है और उसीके ही मुक्तिके कारणभूत तत्त्वज्ञान तथा वैराग्य परिणाम सिद्ध होनेसे मुक्तपना उपपन्न है। और वही प्रधान मुक्तिके पहले मोक्षमार्गका उपदेशक है। आगे सांख्योंके इस मतको दुहराकर उसमें दूषण दिखाते हैं 'प्रधान मोक्षमार्गका उपदेशक है, क्योंकि वह ज्ञ है और ज्ञ इसलिये है कि वह विश्ववेदो-सर्वज्ञ है तथा सर्वज्ञ भी इसलिये है कि वह कर्म 1 मु स 'वस्त्वेकानेकात्मकं । 2. द ‘णामात्मत्वोपपत्तेः' । 3. मु स तदेवं'। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001613
Book TitleAptapariksha
Original Sutra AuthorVidyanandacharya
AuthorDarbarilal Kothiya
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1992
Total Pages476
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Epistemology
File Size9 MB
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