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________________ १९० आप्तपरीक्षा-स्वोपज्ञटीका [कारिका ७७ शम्भोरपि स्वतोऽचेतनत्वप्रतिज्ञानात्खादिभ्यस्तस्य विशेषासिद्धेः । ६ १७७. स्यादाकूतम्-नेश्वरः स्वतश्चेतनोऽचेतनो वा चेतना समवायात्तु चेतयिता खादयस्तु न चेतनासमवायाच्चेतयितारः कदाचित् । अतोऽस्ति तेभ्यस्तस्य विशेष इति; तदप्यसत; स्वतो महेश्वरस्य स्वरूपानवधारणान्निस्स्वरूपतापत्तेः । स्वयं तस्यात्मरूपत्वान्न स्वरूपहानिरिति चेत्, न; आत्मनोऽप्यात्मत्वयोगादात्मत्वेन व्यवहारोपगमात् स्वतोऽनात्मत्वादात्मरूपस्याऽप्यसिद्धेः । ६ १७८. यदि पुनः स्वयं नाऽऽत्मा महेशो नाऽप्यनात्मा केवलमात्मत्वयोगादात्मेति मतम्, तदा स्वतः किमसौ स्यात् ? द्रव्यमिति चेत्; हो सकती है, क्योंकि वह अचेतनता महेश्वरके भो है-~-उसे भी वैशेषिकोंने स्वतः अचेतन स्वीकार किया है--चेतनासमवायसे हो उसे चेतन माना है। १७७. वैशेषिक-हमारी मान्यता यह है कि महेश्वर स्वतः न चेतन है और न अचेतन । किन्तु चेतनासमवायसे चेतन है, लेकिन आकाशादिक तो कभी भी चेतनासमवायसे चेतन नहीं हैं। अतः आकाशादिकसे महेश्वरके भेद है ही ? __ जैन-यह मान्यता भी आपकी सम्यक् नहीं है, क्योंकि महेश्वरका स्वतः कोई स्वरूप निश्चित अथवा निर्धारित न होनेसे उसके स्वरूपहीनताकी प्राप्ति होती है । वैशेषिक-महेश्वर स्वतः आत्मारूप है, अतः उसके स्वरूपहानि प्राप्त नहीं होती? ___जैन-नहीं, आपके यहाँ आत्माको भी आत्मत्वके सम्बन्धसे आत्मा स्वीकार किया है, स्वतः आत्मा नहीं है । अतएव महेश्वरका आत्मारूप भो सिद्ध नहीं होता। $ १७८. वैशेषिक-बात यह है कि महेश्वर स्वयं न आत्मा है और न अनात्मा। केवल आत्मत्वके सम्बन्धसे आत्मा है ? जैन-तो आप बतलायें कि वह स्वयं क्या है ? अर्थात् स्वतः उसका क्या स्वरूप है ? 1. द ॥६५॥' इति पाठः । 2. मु 'तन'। 3. द 'निरात्मतापत्तेः' । 4. द ॥६६॥' इत्यधिकः पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001613
Book TitleAptapariksha
Original Sutra AuthorVidyanandacharya
AuthorDarbarilal Kothiya
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1992
Total Pages476
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Epistemology
File Size9 MB
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