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कारिका ७७ ]
ईश्वर - परीक्षा
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न; द्रव्यत्वयोगाद्द्द्रव्यव्यवहारवचनात् ', स्वतो' द्रव्यस्वरूपेणापि महेश्वरस्याव्यवस्थितेः ।
$ १७९. यदि तु न स्वतोऽसौ द्रव्यं नाऽप्यद्रव्यं द्रव्यत्वयोगाद्द्रव्यमिति प्रतिपाद्यते, तदा स्वयं द्रव्यस्वरूपस्याप्यभावात्किस्वरूपः शम्भुभवेदिति वक्तव्यम् ? सन्नेव स्वयमसाविति चेत्; न; सत्त्वयोगात्सन्निति व्यवहारसाधनात् स्वतः सद्रूपस्याप्रसिद्धेः । अथ न स्वतः सन्न चासन् सत्त्वसमवायात्तु सन्नित्यभिधीयते, तदा व्याघातो दुरुत्तरः स्यात्, सत्त्वासत्त्वयोरन्योन्यव्यवच्छेदरूपयोरेकतरस्य प्रतिषेधेऽन्यतरस्य विधानप्रसङ्गादुभयप्रतिषेधस्यासम्भवात् । कथमेवं सर्वथासत्त्वासत्त्वयोः
वैशेषिक - स्वयं वह द्रव्य है, अर्थात् स्वतः उसका द्रव्य स्वरूप है ? जैन -- नहीं, आपके शास्त्रोंमें द्रव्यत्वके योगसे 'द्रव्य' व्यवहार बतलाया गया है | अतः महेश्वरका स्वतः द्रव्यस्वरूप भी व्यवस्थित नहीं होता ।
१७९. वैशेषिक - हमारा कहना यह है कि महेश्वर स्वतः न द्रव्य है और न अद्रव्य है, किन्तु द्रव्यत्व के योगसे द्रव्य है ?
जैन - जब महेश्वर स्वयं द्रव्यस्वरूप भी नहीं है तो आपको यह स्पष्टतया बतलाना चाहिये कि महेश्वरका स्वतः क्या स्वरूप है ?
वैशेषिक - वह स्वयं सत् हो है अर्थात् उसका स्वतः सत् स्वरूप है ? जैन — नहीं, सत्ताके सम्बन्धसे आपके यहाँ 'सत्' व्यवहार सिद्ध किया गया है । इसलिये महेश्वर स्वतः सत्स्वरूप भी सिद्ध नहीं होता ।
वैशेषिक- हमारा वक्तव्य यह है कि महेश्वर स्वतः न सत् है और न असत् है किन्तु सत्ताके समवायसे सत् है ?
जैन - इस प्रकारका कथन करनेसे तो वह महान् जिसका वारण करना आपके लिये कठिन हो जायगा; असत्ता परस्पर व्यवच्छेदरूप है और इसलिये उनमें से किसी एकका निषेध करनेपर दूसरेका विधान अवश्य मानना पड़ेगा, दोनोंका प्रतिषेध असम्भव है । इसलिये यह कदापि नहीं कहा जा सकता कि महेश्वर स्वतः न सत् है
1. द ' ॥६७॥ ' इति पाठ: ।
2. मु प स प्रतिषु 'सतो' पाठ: । 3. मु ' तदा न स्वयं द्रव्यं स्वरूप - ' । 4. व ' ।। ६८ ।। ' इत्यधिकः पाठः । 5. व ' ।। ६९ ।। ' इत्यधिकः पाठः ।
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विरोध आता है, क्योंकि सत्ता और
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