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कारिका ७७]
ईश्वर-परीक्षा
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प्रभज्यमानैश्चार्थः सम्बन्धः सिद्ध्येत् ? प्रागभावाभावे हि कथं प्रागसतः प्रादुर्भवत: सत्तया' सम्बन्धः ? प्रध्वंसाभावाभावे हि कथं विनश्यतः पश्चादसतः सत्तया सम्बन्धाभावः इति सवं दुरवबोधम् ।
$ १६४. स्यान्मतम् - सत्तायाः स्वाश्रयवृत्तित्वात्स्वाश्रयापेक्षया सर्वगतत्वं न सकलपदार्थापेक्षया, सामान्यादिषु प्रागभावादिषु च तद्वृत्त्यभावात् । तत्राबाधितस्य सत्प्रत्ययस्याभावाद्द्रव्यादिष्वेव तदनुभवात् इति तदपि स्वगृहमान्यम्; ' घटस्याऽप्येवमबाधितघटप्रत्ययोत्पत्तिहेतुष्वेव स्वाश्रयेषु भावान्न सर्वपदार्थव्यापित्वम्, पदार्थान्तरेषु घटप्रत्ययोत्पत्त्यहेतुषु तदभावात, इति वक्तु ं शक्यत्वात् ।
$ १६५. नन्वेको घटः कथमन्तरालवत्तपटाद्यर्थान् परिहृत्य नानाप्रदेशेषु दविष्टेषु भिन्नेषु वर्त्तते युगपत् ? इति चेत् कथमेका सत्ता
नहाने से उसका उत्पन्न होनेवाले ओर नष्ट होनेवाले पदार्थों के साथ सम्बन्ध कैसे बनेगा ? स्पष्ट है कि प्रागभाव के अभाव में प्राक् असत् और पीछे उत्पन्न होनेवाले पदार्थ का सत्ता के साथ सम्बन्ध कैसे हो सकता है ? अर्थात् नहीं हो सकता है। तथा प्रध्वंसके अभाव में विनष्ट होनेवाले अतएव पीछे असत् हुए पदार्थका सत्ता के साथ सम्बन्धाभाव कैसे बन सकता है ? इस तरह सब दुर्बोध हो जाता है ।
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$ १६४. वैशेषिक – हमारा आशय यह है कि सत्ता अपने आश्रय में रहती है, अतः वह अपने आश्रयको अपेक्षा व्यापक है, सम्पूर्ण पदार्थों की अपेक्षा वह व्यापक नहीं है; क्योंकि सामान्यादिक और प्रागभावादिक पदार्थों में वह नहीं रहती है । कारण, उनमें निर्बाध सत्प्रत्यय ( सत्ताका ज्ञान ) नहीं होता, द्रव्यादिकों में ही वह प्रतीत होता है ?
जैन - यह भी आपकी निजकी ही मान्यता है, क्योंकि इस तरह घट भी व्यापक सिद्ध हो जाता है । कारण, वह भी निर्बाध घटप्रत्यय के उत्पादक अपने आश्रयोंमें ही रहता है और इसलिये वह समस्त पदार्थों की अपेक्षा व्यापक नहीं है, क्योंकि अन्य पदार्थोंमें, जो घटज्ञानके जनक नहीं हैं, नहीं रहता है ।
$१६५. वैशेषिक - एक घड़ा बोचके वस्त्रादिकों को छोड़कर दूरवर्ती विभिन्न अनेक देशों में एक-साथ कैसे रह सकता है ?
1. द 'सत्तायाः ।
2. व 'तत्र बाधितस्य सत्प्रत्ययस्य भावात्' । 3. व 'पदार्थान्तरेष्वघटप्रत्ययोत्पत्तिहेतुषु' । 4. व 'भिन्नेषु' नास्ति ।
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