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आप्तपरीक्षा-स्वोपज्ञटीका [कारिका ७७ततोऽर्थान्तरत्वे घटादुत्पादादीनामप्यन्तरत्वं प्रतिपत्तव्यम् । तथा च त एव विशिष्टा न घट इति कथं न घटेकत्वमापद्यते।
$ १६२. ननु घटस्य नित्यत्वे कथमुत्पादादयो धर्मा घटेरन् , नित्यस्यानुत्पादाविनाशधर्मकत्वात् ? इति चेत्, तहि सत्ताया नित्यत्वे कथमुत्पद्यमानरर्थैः सम्बन्धः प्रभज्यमानैश्चेति चिन्त्यताम् ? स्वकारणवशादुत्पद्यमानाः प्रभज्यमानाश्चार्थाः शश्वदवस्थितया सत्तया सम्बन्ध्यन्ते न पुनः शश्वदवस्थितेन घटेन स्वकारणसामर्थ्यादुत्पादादयो धर्माः सम्बन्ध्यन्ते, इति स्वदर्शनपक्षपातमात्रम।
$ १६३. घटस्य सर्वगतत्वे पदार्थान्तराणामभावापत्तेरुत्पादादिधर्मकारणानामप्यसम्भवात् कथमुत्पादादयो धर्माः स्युः ? इति चेत्, सत्तायाः सर्वगतत्वेऽपि प्रागभावादीनां क्वचिदनुपपत्तेः कथमुत्पद्यमानः
जाते हैं तो उत्पादादिक धर्मोंको भी घटसे भिन्न मानना चाहिये। अतएव वे ही विशिष्ट होते हैं, घट नहीं, इस तरह घटकी एकताका आपादान क्यों नहीं किया जा सकता है ? अर्थात् अवश्य किया जा सकता है।
१६२. वैशेषिक-अगर घट नित्य हो तो उसमें उत्पादादिक धर्म कैसे बन सकेंगे ? क्योंकि जो नित्य होता है वह उत्पाद और विनाशधर्म रहित होता है ? __ जैन-तो सत्ता भी यदि नित्य हो तो उत्पन्न होनेवाले और नष्ट होनेवाले पदार्थोके साथ उसका सम्बन्ध कैसे बनेगा, यह भी सोचिये।।
वैशेषिक-अपने कारणोंसे उत्पन्न और नष्ट होनेवाले पदार्थ सदा ठहरनेवाली सत्ताके साथ सम्बन्धित होते हैं, अतः कोई दोष नहीं है ?
जैन-तो सदा ठहरनेवाले घटके साथ अपने कारणोंसे होनेवाले उत्पादादिक धर्म भी सम्बन्धित हो जायें, अन्यथा केवल अपने मतका पक्षपात कहा जायगा। तात्पर्य यह कि नित्य सत्ताके साथ तो उत्पद्यमान
और प्रभज्यमान पदार्थोंका सम्बन्ध हो जाय और नित्य घटके साथ उत्पादादिक धर्मोका सम्बन्ध न हो, यह तो सर्वथा सरासर अन्ध पक्षपात है।
$ १६३. वैशेषिक-घट यदि व्यापक हो तो दूसरे पदार्थोंका अभाव प्रसक्त होगा और तब उत्पादादिधर्मोके कारणोंका भी अभाव होनेसे उत्पादादिक धर्म कैसे बन सकेंगे ?
जैन-सत्ता भी यदि व्यापक हो तो प्रागभावादिक कहीं भी उपपन्न 1. म 'मर्थान्तर'। 2. मु 'घटेरन्' इति पाठो नास्ति ।
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