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कारिका ७७]
ईश्वर-परीक्षा सकृत्सत्तासम्बन्धप्रसङ्गात् । तदसम्बान्धे वा सर्वस्यासम्बन्ध इति परस्परव्याघातः सत्तासम्बन्धासम्बन्धयोः सकृद् दुःपरिहारः स्यात् । प्रागसतः कस्यचिदुत्पादककारणसन्निधानाइत्पद्यमानस्य सत्ता सम्बन्धः, परस्य तदभावात्सत्ता सम्बन्धाभाव इति प्रागुक्तदोषाप्रसङ्गे घटस्यापि क्वचिदुत्पादककारणभावादुत्पादस्य धर्मस्य सद्भावे घटेन सम्बन्धः क्वचित्तु विनाशहेतूपधाना द्विनाशस्य भावो घटस्य तेनासम्बन्ध इति कुतः परोक्तदोषप्रसङ्गः ? सर्वथैकत्वेऽपि घटस्य तद्धर्माणामुत्पादादीनां स्वकारणनियमाद्देशकालाकारनियमोपपत्तेः । न ह्य त्पादादयो धर्मा घटादनान्तरभूता एव सत्ताधर्माणामपि तदनर्थान्तरत्वप्रसङ्गात् । तेषां
अथवा, उसके साथ सत्ताका सम्बन्ध न होनेपर सबके सत्ताका असम्बन्ध हो जायगा और इस तरह सत्तासम्बन्ध और सत्ता-असम्बन्धमें परस्पर दुष्परिहार्य विरोध आवेगा।
वैशेषिक-बात यह है कि जो पहले असत् है उसके उत्पादक कारण मिल जानेसे उत्पन्न हुए उस पदार्थके साथ सत्ताका सम्बन्ध हो जाता है और अन्यके उत्पादक कारण न मिलनेसे उत्पन्न न हुए अन्यके साथ सत्ताका सम्बन्ध नहीं होता और इसलिये सत्ताको एक माननेमें दिया गया उपर्युक्त दोष नहीं है ?
जैन-इस तरह तो घटको भी एक मानने में आपके द्वारा दिया गया दोष नहीं है, क्योंकि घटके भी उत्पादक कारण मिलनेसे उत्पाद धर्मका सद्भाव होता है और घटके साथ उसका सम्बन्ध होता है। किन्तु कहीं विनाशकारण मिलनेसे विनाश धर्म होता है और घटका उसके साथ असम्बन्ध [ सम्बन्ध ? ] हो जाता है। अतः घटको सर्वथा एक होनेपर भी उसके उत्पादादिक धर्मोका अपने कारणोंके नियमसे देश, काल और आकारका नियम बन जाता है । कारण, उत्पादादिक धर्म घटसे अभिन्न हो हों, सो बात नहीं है । अन्यथा सत्ताधर्मोंको भी सत्तासे अभिन्न मानना पड़ेगा । और इसलिये जब सत्ताधर्म सत्तासे भिन्न हैं अथवा भिन्न माने
1. मु स 'सम्बन्धः '। 2. मु स 'सम्बन्धभावः' । 3. द 'प्रोक्त'। 4. मु स 'तूपादाना'। 5. द 'भावें।
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