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________________ . १७४ आप्तपरीक्षा-स्वोपज्ञटोका [कारिका ७७ इति चेत; न; सर्वथा सत्प्रत्ययाविशेषस्यासिद्धत्वाद्विशेष' लिङ्गाभावस्य च । कथञ्चित्सत्प्रत्ययाविशेषस्तु कथञ्चिदेवकत्वं सत्तायाः साधयेत् । यथैव हि सत्सामान्यादेशात सत्सदिति प्रत्ययस्याविशेषस्तथा सद्विशेषादेशात्सत्प्रत्ययविशेषोऽपि घटः सन् पटः सन्नित्यादिः समनुभूयते। घटादिपदार्था एव तत्र विशिष्टा न सत्ता, इति चेत्, न; एवं घटादोनामपि सर्वथकत्वप्रसङ्गात् । शक्यं हि वक्तु घटप्रत्ययाविशेषादेको घटः; तद्धर्मा एव विशिष्टप्रत्ययहेतवो विशिष्टा इति । घटस्यैकत्वे क्वचिद्धटस्य विनाशे प्रादुर्भाव वा सर्वत्र विनाशः प्रादुर्भावो वा स्यात। तथा च परस्परव्याघातः सकृद्घटविनाशप्रादुर्भावयोः प्रसज्येत, इति चेत; न; सत्ताया अपि सर्वथैकत्वे कस्यचित्प्रागसतः सत्तया सम्बन्धे सर्वस्य प्रत्यय होने और विशेष प्रत्यय न होनेसे सत्ता एक प्रसिद्ध है ? जैन-नहीं, सर्वथा सामान्यप्रत्यय असिद्ध है और विशेषप्रत्ययका अभाव भी असिद्ध है। हाँ, कथंचित् सामान्य प्रत्यय सिद्ध है, किन्तु उससे सत्तामें कथंचित् ही एकत्व सिद्ध होगा-सर्वथा नहीं। जिस प्रकार सत्तासामान्यकी अपेक्षासे 'सत् सत्', इस प्रकारका सामान्यप्रत्यय होता है उसी प्रकार सद्विशेषकी अपेक्षासे सत्प्रत्ययविशेष भी होता है, 'घट सत् है', 'पट सत् है' इत्यादि अनुभवसिद्ध है। वैशेषिक-'घट सत् है' इत्यादि जगह घटादि पदार्थ ही विशिष्ट होते हैं, सत्ता नहीं। अतः वह एक ही है, अनेक नहीं ? जैन-नहीं, इस तरह तो घटादिक भी सर्वथा एक हो जायेंगे। हम कह सकते हैं कि सामान्यघटप्रत्यय होनेसे घट एक है, उसके धर्म हो विशिष्ट होते हैं और वे ही विशिष्ट प्रत्ययके जनक हैं। वैशेषिक-यदि घट एक हो तो कहीं चटके नाश होने अथवा उत्पन्न होनेपर सब जगह उसका नाश अथवा उत्पाद हो जायगा। और ऐसी हालतमें एक-साथ घटविनाश और घटोत्पादमें परस्पर विरोध प्रसक्त होगा ? जैन-नहीं, सत्ता भी यदि एक हो तो किसीके, जो पहले सत् नहीं है, सत्ताका सम्बन्ध होनेपर सबके एक-साथ सत्ताका सम्बन्ध हो जायगा। 1. मु स 'विशिष्ट'। 2. द 'प्रत्ययविशेषः । 3. मु स 'शक्यो ' । 4. मु स 'प्रसज्यते' । 5. मु स प 'सत्तायाः' । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.
SR No.001613
Book TitleAptapariksha
Original Sutra AuthorVidyanandacharya
AuthorDarbarilal Kothiya
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1992
Total Pages476
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Epistemology
File Size9 MB
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