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________________ १७८ आप्तपरीक्षा-स्वोपज्ञटीका [कारिका ७७ सामान्यविशेषसमवायान् प्रागभावादीश्च परिहृत्य द्रव्यादिपदार्थान सकलान् सकृद् व्याप्नोतीति समानः पर्यनुयोगः। तस्याः स्वयममूर्तस्वात्केनचित्प्रतिघाताभावाददोष इति चेत्, तहि घटस्याऽप्यनभिव्यक्त मूर्तेः केनचित्प्रतिबन्धाभावात्सर्वगतत्वे को दोषः ? सर्वत्र घटप्रत्ययप्रसङ्ग इति चेत्, सत्तायाः सर्वगत्वे सर्वत्र सत्प्रत्ययः किं न स्यात् ? प्रागभावादिषु तस्यास्तु तिरोधानान्न सत्प्रत्ययहेतुत्वम्, इति चेत्, घटस्यापि पदार्थान्तरेषु तत्तिरोधानाद्धटप्रत्ययहेतुत्वं माभूत् । न चैवं “सवं सर्वत्र विद्यते" [ ] इति वदतः सांख्यस्य किञ्चिविरुद्धम्, बाधकाभावात्, तिरोधानाविर्भावाभ्यां स्वप्रत्ययविधानस्य क्वचित्स्वप्रत्ययविधानस्य चाविरोधात्।। - जैन-तो एक सत्ता सामान्य, विशेष, समवाय और प्रागभावादिकोंको छोड़कर समस्त द्रव्यादि पदार्थों को एक-साथ कैसे व्याप्त कर सकती है ? इस तरह यह प्रश्न तो दोनों जगह बराबर है। वैशेषिक-सत्ता स्वयं अमूर्तिक है, इसलिये उसका किसीके साथ प्रतिघात नहीं होता। अर्थात् समस्त द्रव्यादि पदार्थों को व्याप्त करने में किसीसे उसकी रोक नहीं होती और इसलिये सत्ताके विषयमें उक्त दोष नहीं है ? जैन-तो जिस घटकी मूर्ति ( आकृति ) अनभिव्यक्त है-अभिव्यक्त नहीं हुई है उस घटकी किसीसे रुकावट नहीं होती और इसलिये उसको भी व्यापक स्वीकार करने में क्या दोष है। अर्थात् सत्ताकी तरह घटको भी व्यापक होनेमें कोई दोष नहीं है। वैशेषिक-घट यदि व्यापक हो तो सर्वत्र घटका ज्ञान होना चाहिए ? जैन-सत्ता भी यदि व्यापक हो तो सब जगह सत्ताका ज्ञान क्यों नहीं होगा? वैशेषिक-प्रागभावादिकोंमें सत्ताका तिरोभाव रहता है, इसलिये वहाँ सत्ताका ज्ञान नहीं हो सकता ? जैन-अन्य पदार्थों में घटका भी तिरोभाव रहता है, अतः उनमें घटके ज्ञानका भी प्रसङ्ग मत हो और इस तरहका कथन तो “सब सब जगह मौजूद है" ऐसा कहनेवाले सांख्यके कुछ भी विरुद्ध नहीं है, क्योंकि उसमें बाधा नहीं है। तथा तिरोभाव और आविर्भावके द्वारा इष्ट प्रत्ययका न 1. द तस्या' इति पाठो नास्ति । 2. म स "क्ति । 3. मुसप 'स्याविरो'। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001613
Book TitleAptapariksha
Original Sutra AuthorVidyanandacharya
AuthorDarbarilal Kothiya
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1992
Total Pages476
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Epistemology
File Size9 MB
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