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कारिका ४८ ]
ईश्वर - परीक्षा
१५५.
इति युतसिध्ययुतसिद्धिद्वितयापाये व्याघातो दुरुत्तरः स्यात्, सर्वत्र संयोगसमवाययोरभावात् । “संसर्गहानेः सकलार्थहानिः " [ युक्त्यनुशा० का० ७ ] स्यादित्यभिप्रायः ।
$ १४१. संयोगापाये तावदात्मान्तःकरणयो 'स्संयोगादबुद्ध्यादिगुणोत्पत्तिर्न भवेत् । तदभावे चात्मनो व्यवस्थापनोपायावायादात्मतत्त्वहानिः । एतेन भेरीदण्डाद्याकाश संयोगाभावाच्छब्दस्यानुत्पत्तेराकाशव्यवस्थापनोपायाऽसत्वादाकाशहानिरुक्ता । सर्वत्रावयवसंयोगाभावात्तद्विभागस्याऽप्यनुपपत्तेस्तन्निमित्तस्यापि शब्दस्याभावात् । एतेन परमाणु संयोगाभावात् द्व्यणुकादिप्रक्रमेणावयविनोऽनुत्पत्तेस्तत्र परापरादिप्रत्ययाऽपायादिदमतः पूर्वेणेत्यादि ' प्रत्ययापायाच्च न कालो दिक् च व्यवतिष्ठत इत्युक्तम् ।
$ १४२ तथा समवायाऽसत्वे सकलसमवायिनामभावान्न मनः परमा
व्याघात - विरोध आता है वह निवारण नहीं किया जा सकता । कारण, सब जगह संयोग और समवाय दोनों ही सम्बन्धोंका अभाव है । ओर 'सम्बन्धके अभावसे समस्त पदार्थोंका अभाव प्राप्त होता है ।'
$ १४१. फलितार्थ यह कि संयोग जब नहीं रहेगा तो आत्मा और मनके संयोगसे बुद्धि आदिक गुगोंकी उत्पत्ति नहीं होगी और उनके न होनेपर आत्माका व्यवस्थापक उपाय न होनेसे आत्मा-तत्त्व की हानि हो जायगी । इस कथनसे दण्डादिका आकाशके साथ संयोगका अभाव होनेसे शब्दकी उत्पत्ति नहीं होगी ओर उसके न होनेपर आकाशकी व्यवस्थाका उपाय न रहने से आकाशतत्त्वको भी हानि कथित हो जाती है । अवयव - संयोगका सर्वत्र अभाव होनेसे अवयवविभाग भी नहीं बन सकता है और इसलिये विभागनिमित्तक भी शब्द सिद्ध नहीं हो सकेगा । इसी तरह परमाणुसंयोग न होनेसे द्वयणुक आदि क्रमसे अवयवीकी भो उत्पत्ति नहीं बन सकेगी और उसके न बननेपर उसमें पर और अपर आदि प्रत्यय न हा सकनेसे तथा 'यह इससे पूर्व में है' इत्यादि प्रत्यय के अभाव हो जानेसे न तो काल व्यवस्थित होता है और न दिशा, यह कथन भो समझ लेना चाहिये ।
$ १४२. तथा समवाय जब नहीं रहेगा तो सम्पूर्ण समवायिओंका अभाव हो जायगा और उनके अभाव हो जानेपर मन भी, जो परमाणुरूप
1. मु स प 'करणसं - ' ।
2. द स 'त्यादिना प्रत्यया' ।
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