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________________ १५४ आप्तपरीक्षा-स्वोपज्ञटीका [कारिका ४८. अतिप्रसङ्गात् । तेन यथा हिमवद्विन्ध्यादीनां युतसिद्धिविद्यमानाऽपि न संयोगमुपजनयति सहकारिकारणस्य कर्मादेरभावात् । तथा विभद्रव्यवि. शेषाणां शाश्वतिको युतसिद्धिः सत्यपि न विभागं जनयति', सहकारिकारणस्यान्यतरकर्मादेरभावात्, इति संयोगहेतुयुतसिद्धिमभ्यनुजानन्तो, विभागहेतुमपि तामभ्यनुजानन्तु, सर्वथा विशेषाभावात्। तथा च संयोगस्यैव हेतुयुतसिद्धिरित्यपि लक्षणं न व्यवतिष्ठत एव । लक्षणाभावे च न युतसिद्धिः । नाऽपि युतसिद्ध्यभावलक्षणा स्यादयुतसिद्धिः। न हो । दूसरे, जो विभुद्रव्य सदा ही अविभक्त ( मिले हुए ) हैं-कभी भी विभक्त नहीं हए हैं उनमें नित्य संयोग सिद्ध होता हआ कैसे विभागहेतुक व्यवस्थित होगा ? तात्पर्य यह कि संयोगको विभागहेतुक माननेपर विभुद्रव्योंमें नित्यसंयोग नहीं बन सकेगा, क्योंकि विभुद्रव्य सदैव अविभक्त हैं-वे विभक्त नहीं हैं। वैशेषिक-उनमें विभागजनक यतसिद्धि भी कैसे करेंगे? जैन-इसका उत्तर यह है कि सभी कारणोंके कार्योत्पत्तिका नियम नहीं है । अर्थात् यह नियम नहीं है कि सभी कारण कार्यके उत्पादक होते ही हैं । किन्तु जो समर्थ कारण होता है वह अपने कार्यको उत्पन्न करता है, सहकारी कारणोंकी अपेक्षासे रहित असमर्थ कारण नहीं। अन्यथा अतिप्रसङ्ग दोष आयेगा-जिस किसी कारणसे भी कार्यकी उत्पत्ति हो जायगी । अतः जिस प्रकार हिमवान और विन्ध्याचल आदिकोके युतसिद्धि रहते हुए भी वह संयोगको उत्पन्न नहीं करती है, क्योंकि सहकारी कारण कर्मादिकका अभाव है उसो प्रकार विभद्रव्यविशेषोंके शाश्वतिक ( सदा रहनेवालो ) युतसिद्धि होते हए भी वह विभागको पैदा नहीं करती, क्योंकि उसके सहकारी कारण अन्यतर कर्मादि नहीं हैं, इस प्रकार यदि संयोगहेतुक युतसिद्धिको आप मानते हैं तो विभागहेतुक भी युतसिद्धिको मानिये, क्योंकि दोनोंमें कुछ भी विशेषता नहीं है। ऐसो दशामें 'संयोगका ही जो कारण है वह यतसिद्धि है' यह यतसिद्धिलक्षण भी व्यवस्थित नहीं होता । और जब लक्षण व्यवस्थित नहीं होता तो युतसिद्धिरूप लक्ष्यकी भी व्यवस्था नहीं हो सकती है। तथा युतसिद्धिकी व्यवस्था न होनेपर युतसिद्धिका अभावरूप अयुतसिद्धि भी नहीं बन सकती है, इस प्रकार युतसिद्धि और अयुतसिद्धि दोनोंके अभाव हो जानेपर वैशेषिकोंके यहाँ जो 1. मु 'शाश्वतिका'। 2. मु स प 'जनयति' इति पाठो नास्ति । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001613
Book TitleAptapariksha
Original Sutra AuthorVidyanandacharya
AuthorDarbarilal Kothiya
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1992
Total Pages476
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Epistemology
File Size9 MB
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